-13 कि.मी. का विहार कर लोणार से सुल्तानपुर पहुंचे शांतिदूत
-सहकार विद्या मंदिर पूज्यचरणों से बना पावन
-आचार्यश्री ने अनावश्यक न बोलने व सद्गुणों के विकास दी प्रेरणा
-मुनिश्री हर्षलालजी और साध्वीश्री चांदकुमारीजी की स्मृतिसभा का हुआ आयोजन
31.05.2024, शुक्रवार, सुल्तानपुर, बुलढाणा (महाराष्ट्र) :
ऐतिहासिक व पौराणिक नगरी लोणार को आध्यात्मिकता से भावित बना तेरापंथ की आचार्य परंपरा के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में प्रस्थान किया। लोणारवासी ऐसी कृपा प्रदान करने वाले अपने आराध्य के प्रति कृतज्ञ भाव अर्पित कर रहे थे। सभी को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री उत्तर दिशा में गति कर रहे थे। दांयें हाथ की ओर आसमान में चढ़ता सूर्य अपनी रश्मियों से मौसम को गर्म कर रहा था। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी सुल्तानपुर में स्थित सहकार विद्या मंदिर में पधारे।
विद्यालय परिसर में बने सभा स्थल में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि धर्मशास्त्रों में अच्छी-अच्छी शिक्षाएं प्राप्त होती हैं। आर्षवाणी, ऋषियों की कल्याणी वाणी और आगमों की वाणी पढ़ने से, स्वाध्याय, अनुप्रेक्षा करने से एक सम्बोध प्राप्त हो सकता है, पथदर्शन प्राप्त हो सकता है। महापुरुषों जो साधना करके प्राप्त किया है, जो दूसरों को बताया है, उन वाणियों का स्वाध्याय करने से कुछ भीतर से जागरणा हो सकती है। शास्त्र में कहा गया कि बिना पूछे मत बोलो। बिना नहीं बोलना भी बहुत अच्छा है। इससे वाणी का संयम हो सकता है। आदमी को अपनी वाणी का संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। मृषावाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। किसी आदमी के बारे में झूठी बातें, झूठा आरोप लगाना भी पाप का कारण बन सकता है। आदमी को अपनी वाणी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
आदमी को अनावश्यक नहीं बोलना चाहिए। झूठ नहीं बोलना चाहिए और क्रोध भी न आए, ऐसा प्रयास करना चाहिए। गुस्से को आदमी को कमजोरी कहा जाता है, इसलिए गुस्से को असफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। सत्यं वद्, कोपम् मा कुरु। जो शिक्षा प्राप्त हो, उसे जीवन में उतर जाए तो वह जीवन सफल हो जाता है। विद्या संस्थानों के माध्यम से विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का निर्माण होता है। विद्या संस्थान एक ऐसा स्थान होता है, जहां विद्या, ज्ञान और विद्वता का विकास हो सकता है। इसके साथ उनमें अच्छे संस्कार भी आएं तो ज्ञान और चारित्र के विकास से महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व सामने आ सकता है।
ज्ञानात्मक विकास और भावात्मक विकास भी होना चाहिए। अंधकार को दूर करने वाला गुरु होता है। गुरु होना भी बड़े दायित्व की बात होती है। गुस्सा मनुष्यों का शत्रु है। जिस प्रकार आलस्य महान शत्रु है तो गुस्सा भी शत्रु है। उससे भी बचने का प्रयास करना चाहिए। प्रिय और अप्रिय स्थिति को भी धारण करने का प्रयास करना चाहिए। बिना पूछे मत बोलो, कोई पूछे तो झूठ मत बोलो और गुस्से को असफल बनाने का प्रयास हो। प्रिय और अप्रिय स्थिति को धारण करें। समता, शांति व धैर्य रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में सद्गुणों का विकास हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार शास्त्रों की वाणियों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज मुनि हर्षलालजी स्वामी (लाछूड़ा) व साध्वी चांदकुमारीजी (रतननगर) की स्मृतिसभा का भी आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में दोनों चारित्रात्माओं का संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान करते हुए कहा कि मुनिश्री हर्षलालजी स्वामी कुछ समय पहले तक वर्तमान समय के संतों में दीक्षा पर्याय में सर्व ज्येष्ठ थे। आचार्यश्री ने दोनों चारित्रात्माओं की आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया।
इस स्मृति सभा में मुख्यमुनिश्री, साध्वीप्रमुखाजी, मुनि अजितकुमारजी, मुनि आलोककुमारजी, मुनि योगेशकुमारजी, मुनि वर्धमानकुमारजी, मुनि सिद्धकुमारजी व मुनि दिनेशकुमारजी ने चारित्रात्माओं के प्रति भावांजलि अर्पित की। कार्यक्रम में विद्यालय परिवार की ओर से शिक्षक श्री गजानंद शिंदे ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा विद्यालय की प्रिंसिपल श्रीमती अरुन्धती पिम्पंकर ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।