– आठ किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत पहुंचे बालिसाना
– आचार्यश्री ने साधु की पर्युपासना से होने वाले लाभों को किया व्याख्यायित
– आईटीआई कॉलेज के प्रिंसिपल ने आचार्यश्री के स्वागत में दी अभिव्यक्ति
15 मई, 2025, गुरुवार, बालिसाना, पाटण (गुजरात)।
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा देने वाले, मानवता का कल्याण करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को प्रातः की मंगल बेला में धारपुर से मंगल प्रस्थान किया। लगभग आठ किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ बालिसाना में स्थित सरकारी औद्योगिक तालीम संस्था में पधारे। स्थान से संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
तालीम संस्था परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित लोगों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि साधु की पर्युपासना करने से पर्युपासना करने वाले को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। पहला लाभ होता है कि सामने यदि कोई त्यागी संत बैठे हैं तो साधु के दर्शन का लाभ मिलता है। साधु तो चलते-फिरते तीर्थ के समान होते हैं तो उनके दर्शन से पुण्य की प्राप्ति भी होती है। अहिंसा मूर्ति साधु के श्रद्धा से दर्शन करने से पाप भी झड़ते हैं।
साधु की पर्युपासना करने से कुछ सुनने का भी मौका मिल सकता है। व्याख्यान हो तो वैसे सुनने को मिल सकता है अथवा कोई तत्त्व चर्चा आदि की बात सुनने को मिल सकती है। सुनने से कई बार अपनी समस्याओं का समाधान मिल सकता है और तो क्या कभी अच्छी बातें सुनने से जीवन की दशा व दिशा भी बदल सकती है। सुनने से ज्ञान की अभिवृद्धि भी होती है। प्राचीनकाल में तो आदमी सुन-सुनकर ही ज्ञानार्जन करते थे। श्रवण को ज्ञान प्राप्ति का सशक्त माध्यम भी माना जाता है। ज्ञान की प्राप्ति हो जाए तो कभी विशेष ज्ञान भी प्राप्त हो सकता है। ज्ञान हो जाने पर क्या छोड़ना चाहिए और क्या ग्रहण करना चाहिए, इसका बोध भी हो जाता है। ऐसे विशेष ज्ञान हो जाने से आदमी बुरी बातों को छोड़ सकता है, उस चीज से बचने का प्रत्याख्यान भी कर सकता है। प्रत्याख्यान करने से आदमी के जीवन का कल्याण हो सकता है। वह अपने जीवन में कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। इस प्रकार साधु की पर्युपासना करके आदमी भव सागर से तरने की दिशा में भी आगे बढ़ सकता है।
आईटीआई कॉलेज के प्रिंसिपल श्री एस.जे. प्रजापति ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
