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दुःखमुक्ति के लिए करें संवर-निर्जरा की साधना : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– 10 कि.मी. का विहार कर धारपुर में पधारे शांतिदूत

– श्री माधवलाल गंगाराम रामदास पटेल विद्यालय पूज्य चरणों से बना पावन

14 मई, 2025, बुधवार, धारपुर, पाटण (गुजरात)।
तपती गर्मी, ठिठुरती ठंड, राजस्थान के रेतीले रास्ते हों या कंक्रीट के मार्ग अथवा किसी भी राजपथ अथवा कच्चा मार्ग, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अविचल रूप से गतिमान हैं। गुजरात की पग-पग की धरा को अपनी चरणरज से पावन बनाते हुए व नर्मदा, तापी व साबरमती नदी के गुजरात को आध्यात्मिक ज्ञानगंगा से अभिसिंचित करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान के समय में गुजरात के पाटण जिले में गतिमान हैं। हेमचंद्राचार्य उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय को अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित कर पुनः गतिमान हुए।
बुधवार को तपती गर्मी के बाद भी समताभाव से गतिमान आचार्यश्री महाश्रमणजी दर्शनार्थियों व अन्य लोगों को अभिप्रेरित कर रहे थे। लगभग साढे़ नौ किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ धारपुर में स्थित श्री माधवलाल गंगाराम रामदास पटेल विद्यालय में पधारे। यहां से संबद्ध शिक्षकों व अन्य लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में समुपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुःखमुक्त बनने के लिए क्या करना चाहिए? इस संदर्भ में आगम में बताया गया कि हे पुरुष! अपने आपका निग्रह करो तो दुःख से मुक्त हो सकते हो। निग्रह संवर से होता है और तप के द्वारा निर्जरा होती है। नव तत्त्वों संवर और निर्जरा भी तत्त्व है। संवर की साधना बहुत महत्त्वपूर्ण है। निर्जरा से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण साधना संवर की होती है। निर्जरा तो प्रथम गुणस्थान में भी हो जाता है, किन्तु संवर गुणस्थान आगे का है। संवर यदि दीर्घकाल से है तो निर्जरा तो होगी ही। संवर की प्राप्ति हो जाती है तो मोक्ष की प्राप्ति भी अवश्यम्भावी हो जाती है। संवर को मोक्ष का कारण भी कहा गया है।
आदमी त्याग, प्रत्याख्यान करे। जितना संवर होता है, और आत्महित की भावना से होता है, वह उतना हितकर होता है। त्याग लेने से नहीं, उसे याद रखते हुए उसे निभाने का प्रयास करना चाहिए। एक-एक दिन आदमी को सुख प्रदान करने वाला, दुःख को दूर करने वाला हो सकता है। आचार्यश्री ने एक कथानक के माध्यम से त्याग के महत्त्व को व्याख्यायित करते हुए आगे कहा कि अच्छे संदर्भों का त्याग और नियम है तो आदमी को आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नयन की ओर ले जाने वाला और दुःख से मुक्त रखने वाला, कष्टों से बचाने वाला हो सकता है। आदमी को अपनी वाणी का संयम भी रखने का प्रयास करना चाहिए। संवर और निर्जरा का जितना प्रभाव होता है तो दुःख से मुक्ति हो सकती है।
आचार्यश्री के स्वागत में विद्यालय के प्रिंसिपल श्री रमेशभाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

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