– शांतिदूत आचार्यश्री ने नवदीक्षित मुनि को प्रदान की बड़ी दीक्षा (छेदोपस्थापनीय चारित्र)
– कच्छ युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर ने भी किए शांतिदूत के दर्शन
14 फरवरी, 2025, शुक्रवार, भुज, कच्छ (गुजरात)।
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा देने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ वर्तमान में कच्छ जिले के भुज शहर में मंगल प्रवास कर रहे हैं। आचार्यश्री ने अपने भुज प्रवास के दौरान जहां तेरापंथ धर्मसंघ का 161वां मर्यादा महोत्सव मनाया जो पूरे गुजरात की धरा का प्रथम मर्यादा महोत्सव भी बना। इसके साथ आचार्यश्री ने यहां आयोजित दीक्षा समारोह में एक दीक्षार्थी को मुनि दीक्षा भी प्रदान की। इसके अलावा भी आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में अनेकानेक कार्यक्रम आयोजित हुए। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं की भावनाओं को देखते हुए नगर भ्रमण के दौरान भुज में स्थित तेरापंथ भवन में भी रात्रिकालीन प्रवास किया। अपने ऊपर अपने आराध्य की ऐसी कृपा से भुज के जन-जन का मन आह्लादित है। सात दिन पूर्व आचार्यश्री ने जिस दीक्षार्थी को मुनि दीक्षा प्रदान की थी, उन्हीं नवदीक्षित मुनि कैवल्यकुमारजी को आचार्यश्री ने शुक्रवार को छेदोपस्थापनीय चारित्र (बड़ी दीक्षा) प्रदान की। अपने ही गृहनगर में अपने आराध्य के मुखकमल से दीक्षित होना और फिर बड़ी दीक्षा भी वहीं आयोजित होना, नवदीक्षित मुनि को भी अत्यंत आनंदित करने वाला था।
शुक्रवार को कतिरा पार्टी प्लॉट में बने ‘कच्छी पूज’ समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल सान्निध्य में नवदीक्षित मुनि कैवल्यकुमारजी की बड़ी दीक्षा (छेदोपस्थापनीय चारित्र) का आयोजन भी हुआ। सात दिनों पूर्व ही इस नवदीक्षित मुनि ने मुनित्व की दीक्षा ग्रहण की थी। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की परंपरानुसार प्रथम दीक्षा होने के सात दिनों के बाद पुनः बड़ी दीक्षा का आयोजन होना था। यह भी शायद भुज का विरल इतिहास ही बन रहा था।
नित्य की भांति सर्वप्रथम शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में मित्र की बात आई है। दुनिया में मित्र भी बनाए जाते हैं। मित्र बनाए जाने के पीछे कोई प्रयोजन भी हो सकता है। मित्र से कभी सहायता मिल सकती है, कभी कोई विशेष बातचीत भी हो सकती है। शास्त्र में कहा गया कि हे पुरुष! तुम्हारी आत्मा ही तुम्हारी सबसे अच्छी मित्र है और यह भी सत्य है कि सबसे बड़ी शत्रु व्यक्ति की स्वयं की आत्मा ही होती है। आदमी को सुख प्राप्त हो रहा हो अथवा दुःख प्राप्त हो रहा हो, दोनों स्थितियों को प्रदान करने वाली व्यक्ति की स्वयं की आत्मा ही होती है। स्वयं की आत्मा ही मित्र भी और अमित्र भी बन सकती है।
सद्प्रवृति और शुभ योगों में लगी हुई आत्मा व्यक्ति की मित्र बनती है और शत्रु वह आत्मा बनती है जो दुर्भावों में लगी हुई होती है। दुनिया में लोग किसी के मित्र भी होते हैं तो किसी को अपना दुश्मन भी मानते हैं। व्यवहार की दुनिया में ऐसी बात भी हो सकती है। निश्चय की भूमिका में देखा जाए तो स्वयं की आत्मा ही भला करने वाली और स्वयं की आत्मा ही बुरा करने वाली होती है। जो आत्मा अहिंसा की साधना में लगी हुई होती है, वह मित्र होती है और जो आत्मा राग-द्वेष, हिंसा, हत्या में लगी हुई होती है, वह आत्मा आदमी की शत्रु होती है। असंयमी आत्मा शत्रु के समान होती है और संयमी आत्मा सच्ची मित्र होती है। आदमी को अपनी आत्मा को मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। उसके लिए आदमी को धर्म और अध्यात्म के सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। साधुपन लेने वाले और उसे पालने वाले की आत्मा सच्ची मित्र बन जाती है।
मंगल प्रवचन के उपरांत आचार्यश्री ने बड़ी दीक्षा के कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए और छेदोपस्थापनीय चारित्र के महत्त्व और उसकी विशेषता को बताते हुए आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए नवदीक्षित मुनि कैवल्यकुमारजी को बड़ी दीक्षा प्रदान की। नवदीक्षित मुनि ने सविधि आचार्यश्री को वंदन कर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
कच्छ युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर श्री मोहन भाई पटेल ने आचार्यश्री के दर्शन, मंगल प्रवचन श्रवण के उपरांत अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। पुलिस इंस्पेक्टर हार्दिक त्रिवेदी ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
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