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भिक्षु विचार दर्शन कार्यशाला का आयोजन : बाड़मेर

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अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के निर्देशन में स्थानीय तेरापंथ भवन, बाड़मेर में साध्वी डॉ. संपूर्णयशाजी आदि (ठाणा 5) के सान्निध्य में तेरापंथ युवक परिषद, बाड़मेर द्वारा भिक्षु विचार दर्शन कार्यशाला का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम साध्वी डॉ. संपूर्णयशाजी ने नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के साथ कार्यशाला प्रारंभ किया गया। साध्वीश्री जी ने सामूहिक गीतिका के माध्यम से भिक्षु स्वामी की। साध्वी डॉ. संपूर्णयश जी ने मंगल उद्बोधन में कहा कि आज तेरापंथन संघ की जैन परंपरा में एक नया संप्रदाय जन्म लेना लगा यह कल्पना न आचार्य रघुनाथ को थी और न स्वयं भिक्षु को ही यह कोई गुरुत्व और शिष्यत्व का विवाद नहीं था। वस्त्र पत्र के विषय में श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा में मतभेद है तेरापंथ की स्थापना युग की मांग थी। आचार्य भिक्षु के नेतृत्व मैं तेरा साधु एकत्रित हुए किसी कवि ने नाम रख दिया तेरापंथ तभी आचार्य भिक्षु ने कहा-हे प्रभु यह तेरापंथ स्वामी जी ने कहा जो धर्म के कार्य का धर्म में और धर्म के कार्य का अधर्म में समावेश करता है। वह दोनों प्रकार से अपने आप को बाध लेता है। और दया दान और परोपकार यह तीन तत्व सामाजिक जीवन के आधार स्तंभ रहे है। धर्म की आराधना में भी इनका स्थान महत्वपूर्ण रहा है। परंतु धर्म और परिवर्तनशील है उसमें दया दान और परोपकार की मान्यता व्यवस्था से उत्पन्न नहीं है वह तो संयम से जुड़ी हुई है। संयम का विकास हो वही दया हो सकती है। वही दान और परोपकार आचार्य भिक्षु ने कहा यह लोकोत्तर भाषा है लौकिक भाषा इसे भिन्न है। और बहुत भिन्न है।
एक आदमी अपने माता-पिता की दिन रात सेवा करता है उन्हें मनचाहा भोजन करवाता। यह लौकिक उपकार है। एक आदमी अपने माता-पिता को ज्ञान श्रद्धा और चरित्र की प्राप्ति हो ऐसा प्रयत्न करता है उन्हें धार्मिक सहयोग देता है यह लोकोत्तर उपकार है। अहिंसावादी और उपयोगिता वादी अपने रास्ते पर कई बार मिलेंगे किंतु अंत में ऐसा अवसर भी आएगा जब उन्हें अलग-अलग रास्ते पकाने होंगे और किसी-किसी दिशा में एक दूसरे का विरोध भी मानना होगा। आचार्य भिक्षु ने धर्म आराधना है वह स्वतंत्र मन से होती है जैसे की आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ धर्म संघ को संगठित किया उसकी व्यवस्था के लिए अनेक मर्यादाएं निर्धारित की जब उन्होंने विशेष मर्यादाएं बनानी चाहिए। तब साधु साध्वियों को पूछा उन्होंने भी यह इच्छा प्रकट की कि ये होनी चाहिए। तेरापंथ धर्म संघ का आचार्य कभी भी यह नहीं कहता मेरे पास या अमुक संप्रदाय में जाने मात्र से मुक्ति हो जाएगी। साध्वीश्री जी ने गांधी जी के सिद्धांत व अन्य कहानी के माध्यम से भिक्षु स्वामी के बारे में बताया है। इस कार्यशाला में तेरापंथ सभा तेरापंथ महिला मंडल तेरापंथ युवक परिषद तेरापंथ कन्या मंडल के सदस्य उपस्थित हुए।

 

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