मुनिश्री जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में महाप्रज्ञ फिलोशोपी फोर्म के अंतर्गत त्रिदिवसीय आनंदोत्सव प्रेक्षाध्यान शिविर का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर मुनिश्री जिनेशकुमार जी ने कहा कि जीव अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण कर रहा है उसका कारण कर्म है। राग द्वेष है। हर मनुष्य के भीतर चार मनोवृत्तियां हैं-पशुता, मानवता साधुता, दिव्यता। दिव्यता तक पहुंचने के लिए जप, स्वाध्याय, ध्यान, प्रार्थना, भजन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दिव्यात्मा की साधना का एक महत्वपूर्ण तत्व है-ध्यान। ध्यान जागरूकता की साधना है, ज्योति व प्रकाश की साधना है ध्यान के द्वारा व्यक्ति अपने भीतर सोयी शक्तियों को जागृत कर सकता है ध्यान दर्पण है, एक्सरा है, ध्यान तप है। ध्यान से व्यक्ति अपनी वृत्तियों का परिष्कार करके दिव्यात्मा बन सकता है। जो स्वार्थ रत व्यक्ति अपने हित के खातिर दूसरों का अहित करता है वह पशुता की श्रेणी में आता है दूसरों का अहित नहीं करता है वह मानवता की श्रेणी में आता है जो दूसरों की सेवा करता है, परोपकार भाव रखता है। वह साधुता की श्रेणी में आता है जो परमार्थ व तारण हारी होता है वह दिव्यात्मा है। संसार में दिव्य पुरुष विरले होते है।
मुनि श्री ने आगे कहा कि ध्यान में एक ध्यान प्रेक्षाध्यान है। प्रेक्षाध्यान एक विशिष्ठ साधना पद्धति है। प्रेक्षाध्यान स्वभाव व व्यवहार परिवर्तन की साधना है। प्रेक्षाध्यान की साधना से परम आनंद की अनुभूति कर सकते है। मुख्य प्रशिक्षक रणजीत दुगड़ ने सुख और आनंद में अंतर स्पष्ट करते हुए प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति के बारे में बताया। प्रेक्षा प्रशिक्षिका सुधा जैन ने संदेश का वाचन किया। मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने प्रेक्षा गीत का संगान करते हुए से संचालन किया।
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