– आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को ज्ञान प्राप्ति की पांच बाधाओं से बचने की प्रेरणा दी
– तेरापंथ किशोर मण्डल ने दी अपनी प्रस्तुति, प्राप्त किया आशीर्वाद
– समणश्रेणी ने अपने आराध्य के सम्मुख दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति
9 फरवरी, 2025, रविवार, भुज, कच्छ (गुजरात)।
भारत के पश्चिम क्षेत्र का समृद्ध राज्य गुजरात। उसका सबसे बड़ा जिला कच्छ और कच्छ का एक मुख्य नगर भुज। जहां वर्तमान में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी विराजमान हैं। भुजवासी अपने आराध्य की ऐसी कृपा को प्राप्त कर भावविभोर बने हुए हैं। नित नूतन कार्यक्रमों से भी भुजवासी अपनी श्रद्धा की प्रणति अर्पित कर रहे हैं।
रविवार को कच्छी पूज समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में शिक्षा का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। शिक्षा के लिए आज सरकार भी बहुत प्रयत्न कर रही है। जगह-जगह सरकारी स्कूल, विद्यालय, महाविद्यालय देखने को मिलते हैं तो प्राइवेट स्कूल, कॉलेज आदि भी देखने को मिलते हैं। बच्चे विदेशों में भी पढ़ने के लिए जाते हैं। इसका मतलब है कि शिक्षा के प्रति जागरूकता है, कहीं कमी की बात भी हो सकती है। शिक्षा दो प्रकार की होती है-पहली लौकिक शिक्षा और दूसरी आध्यात्मिक शिक्षा। लौकिक शिक्षा के अंतर्गत कोई डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, सीए, प्राध्यापक आदि बनते हैं। लौकिक शिक्षा के द्वारा कोई-कोई अपने क्षेत्र में प्रवीण बन सकता है। हालांकि इनकी भी अपनी उपयोगिता होती है। लौकिक शिक्षा का अपना एक भाग है। शिक्षा का दूसरा भाग है-आध्यात्मिक शिक्षा। इसमें धर्म शास्त्रों की शिक्षा, आत्मा के संदर्भ में शिक्षा, कर्मवाद, लोकवाद आदि-आदि तात्त्विक विषयों पर आधारित शिक्षा की धाराएं आध्यात्मिक शिक्षा के अंतर्गत होती हैं।
कोई भी शिक्षा ग्रहण करनी हो, उसके लिए परिश्रम और समर्पण की आवश्यकता होती है। आदमी को जिस विषय की शिक्षा प्राप्त करनी हो उसके लिए परिश्रमशीलता होनी चाहिए। सीखने वाले में प्रतिभा की आवश्यकता और अच्छा आध्यापक/प्रधाध्यापक भी मिल जाए और थोड़ी संसाधनों की उपलब्धता भी हो जाए तो वहां शिक्षा का अच्छा विकास दिखाई दे सकता है। मूल तो विद्यार्थी ही होता है। हालांकि शिक्षक एवं संसाधन अच्छे मिल जाएं तो विद्यवान बना जा सकता है। मूल है कि विद्यार्थी में विद्या ग्रहण करने की इच्छा हो तो विद्यवान बनने का सफर पूरा हो सकता है। सफलता रूपी पौधा परिश्रम रूपी जल का सिंचन मांगता है। इसलिए विद्यार्थी को परिश्रमी होना चाहिए।
विद्यार्थी में ज्ञान के प्रति आकर्षण हो, विनय का भाव होता है तो विद्या का विकास हो सकता है। विद्या विनय से शोभित होती है। जो विद्यार्थी विद्या प्राप्ति की अभिलाषा रखते हैं, उन्हें पांच बांधाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। पहली बाधा है-अहंकार। अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। दूसरी बाधा है-क्रोध। जिस विद्यार्थी को ज्यादा गुस्सा आता है, वह भी ज्ञान प्राप्ति में बाधा है। तीसरी बाधा है-प्रमाद। विद्यार्थी को प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। चौथी बाधा है-बीमारी। शरीर स्वस्थ होता है तो ज्ञान का अभ्यास अच्छा हो सकता है। पांचवीं बाधा है-आलस्य। अगर विद्यार्थी में आलस्य हो तो भला वह कितना ज्ञान अर्जित करेगा। इसलिए विद्यार्थियों को इन पांच बाधाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए और ज्ञानार्जन के क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत तेरापंथ किशोर मण्डल, भुज ने अपनी प्रस्तुति दी। आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में उपस्थित जीतो एपेक्स के जनरल सेक्रेट्री श्री ललित डांगी ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए विश्व नवकार दिवस के संदर्भ में पत्र प्रस्तुत किया तो आचार्यश्री ने सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। समणी ख्यातिप्रज्ञाजी व समणी निर्मलप्रज्ञाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
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