साध्वीश्री परमयशा जी के सान्निध्य में अणुव्रत सप्ताह के अंतर्गत ‘नशा मुक्ति दिवस’ के कार्यक्रम का समायोजन हुआ। डॉ. साध्वी परमयशाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी ने हिंदुस्तान में एक लाख किमी की पदयात्राएं की। जन-2 को जीने की कला सिखायी। नशा नाश का द्वार है। नशा खतरे की घंटी है। परिवार तबाह हो रहे है। नशा का उल्टा करने से व्यक्ति की शान बाद जाती है। कई ऐसे वावय प्रचलित है – गुटखा खाओ गाल गलाओ। शराब पीओ यादस्त गमाओं। ड्रग्स से जीवन बर्बाद बनाओ। आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा के तीन संकल्प नशामुक्ति, नैतिकता, सद्भावना को भारत के लोगों ने स्वीकार किए। पद, पैसे, प्रतिष्ठा, पढ़ाई, शक्ति, रूप आदि का नशा तो कईयों का होता है परंतु प्रभु की भक्ति में नशा लगता नहीं है। जब भगवान में नशा लगता है तो तमाम नशे नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। शराब खराब है इस वाक्य को जीवन में आत्मसात् किया। यूनानी तत्त्ववेत्ता डायोजिनीज ने मूल्यवान शराब को पार्टी में मिट्टी में मिलाते हुए कहा-मैं इसे मिट्टी में नहीं मिलाता तो यह मुझे, मिट्टी में मिला देती।
आपने आगे कहा कि दीर्घ श्वास प्रेक्षा का प्रयोग करे। मैं नशा नहीं करूंगा तीन बार प्रण करे । समवृत्ति स्वास का प्रयोग करे, सौभाग्य का सूरज उगाएं। मन के मालिक बने – नौकर नहीं। फिल्म के हीरो बने जोकर नहीं। साधी विनम्रयशाजी ने कविता के नशा मुक्ति दिवस पर माध्यम से भावों की प्रस्तुति दी। डॉ. साध्वीश्री परमयशाजी, विनम्रयशाजी, मुक्ताप्रभाजी और कुमुदप्रभाजी ने है शराब कितनी खराब पीकर के बनते मदहोश गीत का संगान किया।
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