मुनि श्री दीपकुमारजी ने नमस्कार महामंत्र के मंगल उच्चारण से एवं भगवान महावीर स्वामी की स्तुति के साथ ‘रिश्तों की डोर न हो कमजोर’: परिवार प्रशिक्षण कार्यशाला का प्रारम्भ स्थानीय तेरापंथ भवन में किया। परिवार प्रशिक्षण कार्यशाला में मुख्यता इन बिंदुओं पर पाथेय श्रवण करवाया। क्या आप चाहते हैं हमारा परिवार सदा खुशहाल रहे। क्या आप चाहते हैं। परिवार में किसी तरह की लड़ाई झगड़ा न हो। क्या आप चाहते हैं परिवार के सभी सदस्यों का तालमेल बना रहे। क्या आप चाहते हैं हमारा परिवार स्वर्ग से सुंदर बने। सुंदर व्याख्या, कहानियों, घटनाओं के साथ अभिव्यक्ति प्रदान करवायी। प्रेम है तो परिवार है। परिवार के सभी सदस्यों को जिम्मेदारी निभानी चाहिए। एक-दूसरों के साथ हाथ बढ़ाना से परिवार में शान्ति बनी रहती हैं। घर पर पधारे हुए अतिथियों का आदर, सत्कार-सम्मान करना चाहिए। रामायण पाठ वनवास से सम्बन्धित राम और लक्ष्मण भाइयों का परस्पर प्रेम का उदाहरण देते हुए राम-सीता की सेवा का वरदान मांगकर भाई को पिता के सम्मान, भाभी को मां के सम्मान सेवा करकर अपना कर्त्तव्य निभाया।
रामायण और महाभारत में भाइयों का प्रेम एवं दूसरी तरफ स्वार्थ की भूमिका का वर्णन करते हुए बताया कि माता-पिता का ध्यान, सेवा, उनके प्रति कर्त्तव्य एवं उन्हें कोई कष्ट, आंसू नहीं दें, उन्हें शीत समाधी मिले। कहना सीखें, सहना सीखें और मौके पर लड़ना सीखें तभी परिवार खुशहाल होगा। मुनि श्री काव्यकुमारजी ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति अहंकार पर दी। श्रावक एवं श्राविका समाज की अच्छी उपस्तिथि रही। मंगलपाठ के साथ कार्यशाला सम्पन्न हुई।
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