अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के निर्देशानुसार नवंबर माह की 3 घंटे की कार्यशाला का आयोजन मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में विवेक विहार, साउथ हावड़ा में किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ त्रिपदी वंदना के द्वारा किया गया।
मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने ध्यान का अर्थ समझाते हुए बताया कि ध्यान का बाधक तत्व है अज्ञान, क्रोध, प्रमाद, मोह। ध्यान जागरूकता के साथ करना चाहिए ध्यान की अनेक विधिया है। जिनमें में एक है ’प्रेक्षाध्यान’। ध्यान के द्वारा अनेक प्रकार की चिकित्सा कर सकते हैं। ध्यान के द्वारा विविध प्रकार के रोगों को ठीक कर सकते हैं। मन में आस्था होने पर कैंसर जैसे रोग भी ठीक हो सकते हैं प्रेक्षा ध्यान के चार चरण बताए है। कायोत्सर्ग, अंतरयात्रा, श्वास प्रेक्षा, ज्योतिकेंद्र प्रेक्षा। ध्यान की पृष्ठभूमि कायोत्सर्ग है। कायोत्सर्ग किए बिना ध्यान में प्रवेश नहीं कर सकता है। शरीर के प्रति आसक्ति को छोड़ना पड़ेगा। श्वास के भी अनेक प्रकार होते हैं। णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं का केंद्रों पर रंगों का ध्यान कराते हुए लाभ बताए।
प्रेक्षाध्यान का इतिहास, प्रेक्षाध्यान क्या है – श्रीमती अंजु जैन ने बताया। कायोत्सर्ग थ्योरी श्रीमती सुनिता जी भुतोड़िया ने कराई। प्रेक्टिकल श्रीमती सुधाजी जैन ने कराया। प्रेक्षा चर्या के सूत्र श्रीमती सुचित्राजी जैन ने बताए। कुशल संचालन श्रीमती अंजु जी जैन ने किया।
कार्यक्रम में अभातेममं की संरक्षिका नारी रत्न श्रीमती तारा जी सुराणा, श्रद्धा की प्रतिमूर्ति श्रीमती चंपा जी कोठारी, बंगाल प्रभारी श्रीमती अनुपमा जी नाहटा, व सभी क्षेत्रों के महिला मंडल के पदाधिकारी गण व महिला मंडल की बहनों सहित लगभग 150 बहनों की गरिमामय उपस्थिति रही।
