साध्वी श्री संयमलता जी के सान्निध्य में 110 दिन निराहार तप का प्रत्याख्यान मण्डिया में किया गया। साध्वी श्री संयमलता जी ने कहा कि तपस्या जीवन का शंृगार है त्याग तप जिवन को उन्नत व तेजस्वी बनाते है। लम्बी-लम्बी तपस्याएं उस पदार्थवादी व भौतिकवादी युग के लिए चुनौती बन गई है। तपस्या से तपस्वी पुराने कर्मों को प्रकम्पित करता है, धुन डालता है अपनी आत्मा को उज्ज्वल व पवित्र बनाने का माध्यम है। तपस्या के क्षेत्र में इतिहत्या में अमिट पदचिह्न अंकित है। लेकिन इस कलयुग में अनुराधा जी ने 110 दिन तप प्रत्याख्यान कर सबको रोमांचित कर दिया है।
तप के साथ अभिग्रह कि प्रयोग भी विस्मित करने वाले है। तपस्या मनोबल व संकल्प शक्ति के साथ की जाती है तपस्या करके आप लांक्षित मंजिल को प्राप्त करें। मंगलकामना… तप अनुमोदना में अमित आच्छा मासखमण, अनिलजी ने ११, संदीप आच्छा ने ८ एवं अनेक श्रावक स्वतिकाओं ने तेलो के द्वारा तपस्वी की अनुमोदना में सहभागिता दी। साध्वीश्री रौनकप्रभा जी ने कहा कि तप अपने संकल्प व गुरुकृपा गुरु ऊर्जा के साथ होता है। अनुराधाजी ने गुरु कृपा के साथ 110 तप का प्रत्यास्यान किया। साध्वीश्री संयमलता जी द्वारा रचित ‘तपसी के तप से हिलजाता स्वर्गलोक में इन्द्रासन’ गीत का संगान किया। सुदर्शनजी आच्छा, संदीप आच्छा, पूर्व अध्यक्ष नरेन्द्र जी दक व मण्डल की बहिनों ने विचार रखे।
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