तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में सूरत में नौ दिवसीय सघन साधना शिविर का आयोजन किया गया। यह शिविर 1 नवंबर को प्रारंभ हुआ तथा 10 नवंबर को खत्म हुआ। इस शिविर में बालक एवं बालिका वर्ग को साधना के क्षेत्र का विशेष प्रशिक्षण दिया गया। बालिका वर्ग में यह शिविर प्रथम बार आयोजित हुआ। खानपान में द्रव्य सीमा, ब्रह्म मुहूर्त में उठना, मोबाइल फोन का वर्जन, रात्रिभोजन त्याग, भूमि पर शयन जैसे कई कठोर नियमों का पालन कर, इस शिविर में संभागियों ने संयम साधनामय जीवन जीने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। गुरुदेव एवं चारित्रात्माओं द्वारा आगम एवं तत्व ज्ञान का शिक्षण भी इस दौरान दिया गया। शिविर सुबह 5 बजे प्रारंभ होकर रात्रि 9 बजे तक चलता था दोनों समय भोजन के लिए समय दिया जाता था। शिविर में मुख्य रूप से सुबह गुरु दर्शन व आराधना, प्रार्थना, योग साधना, समय्कत्व साधना, परमार्थ साधना, आत्म शुद्धि साधना, वैराग्य जागृति साधना, श्रुत साधना, स्वाध्याय साधना, गमन योग साधना, अध्यात्म साधना, आत्मा स्नान साधना, भाव शुद्ध साधना, भिक्षु दर्शन साधना, प्रयोग साधना आत्म-चिंतन साधना को लेकर विभिन्न साध्वियों द्वारा मार्गदर्शन दिया गया। शिविर में मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने विशेष प्रेरणा प्रदान कर संयम जीवन की ओर अग्रसर होने हेतु उद्बोधन प्रदान किया।
शिविर को लेकर अपने अनुभव साझा करते हुए झाबुआ से ऐंजल गादिया ने बताया कि प्रथम दिन तो नियमों को सुनकर में काफी घबराई, तब मुझे साध्वीवर्या जी ने समझाया। जब दूसरे दिन उन नियमों के साथ मैंने जीवनशैली प्रारंभ की तो सर्वप्रथम गुरु की सन्निधि और प्रेरणा प्राप्त करना, मेरे लिए सबसे अहम था साथ ही इस शिविर मे ब्रह्म मुहूर्त में उठाना, योग करना, ध्यान से एकाग्रता में वृद्धि हुई, क्रोध में कमी आयी, किसी विषय को लेकर गंभीरता में वृद्धि और चिंतन भी बढ़ा। देव, गुरु और धर्म पर आस्था रखने की बात कही गईं। तेरापंथ धर्मसंघ का गौरवशाली इतिहास बताया गया। इसी बीच सूरत में दीक्षार्थी का दीक्षा समारोह देखने का लाभ मिला। इन 8 दिनों में हमें साधु जीवन जीने का व संयमित जीवन जीने का मौका मिला तथा इस शिविर से हमें जीवन जीने की एक नई दिशा भी मिली। शिविर के अंतिम दिन सभी बालक-बालिकाओं को सम्मानित किया गया। करीब 200 से अधिक बालक-बालिकाओं ने इस शिविर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
झाबुआ जिले के रायपुरिया से मुस्कान कोटडिया ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया की शिविर में विशेष रूप से मोबाइल का उपयोग नहीं करना, अपने आप में एक अद्भुत बात थी शिविर में विशेष रूप से साध्वीप्रमुखाश्री जी व साध्वीवर्या जी द्वारा कैसे संयमित जीवन जीया जाए तथा त्याग और तपस्या के महत्व को भी विस्तार रूप में बताया। ध्यान साधना से चित स्थिर रखने में सहायता मिली, एकाग्रता में वृद्धि हुई तथा कैसे साधु जीवन की कठोर तपस्या करके मोक्ष के मार्ग को प्राप्त किया जा सकता है के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। साथ ही गुरुदेव के समक्ष मुझे अपनी भावना अभिव्यक्त करने का समय दिया गया, वह भी अकल्पनीय है।
रायपुरिया क्षेत्र से ही संस्कृति कोटड़िया ने भी इस शिविर के बारे में बताया कि शिविर के माध्यम से देव, गुरु व धर्म के प्रति आस्था रखने को लेकर जागरूक किया गया। साध्वीवृंद द्वारा समय-समय पर विभिन्न साधनाओं को लेकर उद्बोधन के माध्यम से हमें धर्म के प्रति, नैतिक जीवन के प्रति, सद्भावना व नशा मुक्ति को लेकर व मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने को लेकर जागरूक किया गया। धर्म की बारीकियां को जानने का मौका मिला तथा पूर्व में किस तरह यह धर्म प्रारंभ हुआ और आज गतिमान है उसको लेकर संपूर्ण जानकारी साझा की गई।
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