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तप अभिनंदन समारोह का आयोजन : गंगाशहर

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शांति निकेतन, गंगाशहर। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, गंगाशहर द्वारा सेवाकेंद्र व्यवस्थापिका साध्वी श्री चरितार्थप्रभा जी व साध्वी श्री प्रांजलप्रभा जी के सान्निध्य में तप अभिनंदन समारोह का आयोजन शांति निकेतन में किया गया। कार्यक्रम में तप अनुमोदना करते हुए साध्वी श्री चरितार्थप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि तप के द्वारा आत्मा को कृष किया जाता है अर्थात् आत्मा को कषायों से पतला किया जा सकता है। तप का आशय त्याग करने से है। तपस्या में अशन, पान, खादिम, स्वादिम का त्याग किया जाता है। उनके साथ कषाय व इंद्रियों के विषयों का त्याग करना चाहिए। बाह्य तप की तुलना में अभ्यंतर तप अधिक महत्वपूर्ण है, जो कि मोक्ष तक पहुंचाने वाला है। अहंकार का नाश करने के लिए विनय का, रसनेन्द्रिय पर नियंत्रण के लिए विगय वर्जन या रस त्याग का अभ्यास करें। इंद्रियों पर विजय के लिए ध्यान व कायोत्सर्ग का प्रयोग करें। उन्होंने सात्विक, राजसिक व तामसिक तप का विवेचन करते हुए सात्विक तप को श्रेष्ठ बताया। साध्वी श्री प्रांजलप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि तपस्या के द्वारा व्यक्ति व आत्मा का तेज बढ़ता है। जीवन की कालिमा को धोया जा सकता है। गौतम स्वामी द्वारा पूछने पर भगवान महावीर ने कहा कि तपस्या से कर्मों का शोधन होता है। कर्मों की निर्जरा होती है। निर्जरा का पहला प्रकार अनशन है। उन्होंने तप की अनुमोदना करते हुए तप की महत्ता बताई।
कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ कन्या मंडल द्वारा प्रस्तुत मंगलाचरण से हुआ। तेरापंथ युवक परिषद मंत्री भरत गोलछा, तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष संजू लालाणी व तेरापंथी सभा के निवर्तमान अध्यक्ष अमरचंद सोनी ने अपने उद्गार व्यक्त किए। समारोह में आठ व आठ से अधिक तपस्या करने वाले 79 तपस्वियों का सम्मान किया गया। अमरचंद सोनी, नवरतन बोथरा, मांगीलाल लुणिया, शांतिलाल पुगलिया, संजू लालाणी, मंजू आंचलिया, देवेंद्र डागा, भरत गोलछा, विनीत बोथरा, लिखमीचंद मालू, जीवराज श्यासुखा, हड़मान मल सेठिया, मदनलाल बोथरा, कन्हैयालाल बोथरा ने तपस्वियों को अभिनंदन पत्र व साहित्य प्रदान कर सम्मानित किया। कार्यक्रम का सफल संचालन तेरापंथ सभा के कोषाध्यक्ष रतनलाल छलाणी ने किया।

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