मुनि श्री अर्हतकुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में वृहद मंगल पाठ का आयोजन अणुव्रत भवन, नागपुर में किया गया। उससे पूर्व मुनिश्री ने धर्म परिषद को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन को सरस और मधुर बनाने वाले होते हैं- पर्व। पर्व एक प्रेरणा होती है जिस प्रेरणा में हमारे जीवन को स्वर्णाेम बनाने के रहस्य छिपे हुए होते हैं। भारतीय त्योहारों में एक विशिष्ट त्योहार है-दीपावली। जैन धर्म में यह पर्व भगवान महावीर से जुड़ा है। इस दिन भगवान महावीर ने शिव लक्ष्मी को प्राप्त किया था। आज मानव दीपावली मानता है भौतिकता में उलझ कर केवल दीप जलाने से कुछ नहीं होगा। हमें ज्ञान दीप के प्रकाश से आत्मा को प्रकाशित करना है। दीपावली के दिन लोग लक्ष्मी की पूजा करते हैं लक्ष्मी के तीन रूप हैं- अलक्ष्मी, लक्ष्मी, महालक्ष्मी। अलक्ष्मी-अनीति से कमाया हुआ धन। लक्ष्मी- नीति से कमाया हुआ धन। महालक्ष्मी-नीति रीति प्रीति से कमाया हुआ धन हमें महालक्ष्मी को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। पुरुषार्थ के दीपक में साहस की बाती और लगन की ज्योति हमेशा भाग्य को प्रकाशित करती है। सहव्रती मुनि श्री भरतकुमार जी ने कहा कि लक्ष्मी प्राप्त करने से पहले धर्म लक्ष्मी (श्री) को प्राप्त करना है। लक्ष्मी तो चंचल है वह टिके ना टिके पर धर्म की लक्ष्मी हमारे साथ चलेगी। धर्म ही हमारा त्राण-प्राण व शान है। बाल संत जयदीप कुमार जी ने सुमुधुर गीत का संगान किया। विशेष अनुष्ठान का क्रम मुनि श्री जी ने सभा में करवाया। जिसका सभी लोगों ने लाभ लिया।
इस अवसर पर तेरापंथ सभा, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के पदाधिकारी एंव श्रावक समाज की अच्छी उपस्थिति रही। मुनि श्री अर्हतकुमार जी ने वृहद मंगल पाठ सुनाया और एक वर्ष के लिए सामूहिक संकल्प करवाए। मंगल पाठ की पावन बेला में जन सैलाब देखने को मिला।
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