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जैन जीवन शैली कार्यशाला का आयोजन : साउथ हावड़ा

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मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 व दिगम्बर श्रमणोपाध्याय मुनिश्री विभंजन सागर जी महाराज के सान्निध्य में जैन जीवन शैली कार्यशाला का आयोजन प्रेक्षाविहार में साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा के द्वारा किया गया। इस अवसर पर जैन समाज के श्रद्धालुगण अच्छी संख्या में उपस्थित थे। इस अवसर पर उपस्थित जन समूह को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा कि जीवन के दो छोर है जन्म व मरण। जन्म के साथ जीवन का शुभारंभ होता है। मरण के साथ जीवन का समापन होता है। जन्म मरण से भी ज्यादा मूल्य जीवन का है। जीवन अच्छा जीया तो आनंद ही आनंद है प्रकाश ही प्रकाश है। हमारी जीवन शैली सात्विक होनी चाहिए। सदाचार का भाव होना चाहिए। अहिंसा, सहिष्णुता, आहार शुद्धि व्यसन‌मुक्ति साधार्मिक वात्सल्य विनम्रता से युक्त व्यवस्थित जीवन शैली होनी चाहिए। संस्कारों के सृजन से ही व्यक्ति भाग्योदय को प्राप्त होता है। आचार विचार व्यवहार जीवन को ऊंचाई की ओर ले जाते है।
मुनि श्री ने आगे कहा हम जैन है इसका गर्व होना चाहिए। एकता में अनेकता अनेकता में एकता यही जैनों की विशेषता है। आज दो धाराओ का मिलन हुआ है मिलते आप भी हो मिलते हम भी हैं अंतर इतना ही है कि हम हृदय मिलन करते है आप हस्त मिलन करते है। हृदय से मिलना ही वास्तव में सच्चा मिलन है। संतो से मिलकर प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। समय समय पर ऐसे कार्यक्रम करने से जैन शासन मजबूत होता है। मुनिश्री विभंजन सागरजी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि परिणामों की निर्मलता ही जैन धर्म है। जिसके भाव पवित्र है वह जैनी है। भगवान महावीर ने श्रमण धर्म व श्रावक धर्म का उपदेश दिया। जैन की पहचान उसकी क्रिया से होती है। धार्मिक क्रिया को आदत बना लें तो जीवन शैली बदल सकती है। लौकिक शिक्षा कैरियर बनाती है और धार्मिक शिक्षा करेक्टर बनाती है। बाल मुनि श्री कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ महिला मंडल की बहनों के मंगलाचाण से हुआ। स्वागत भाषण साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष लक्ष्मीपत जी बाफणा ने दिया। दिगम्बर समाज के ट्रस्टी कमलजी काला ने भी अपने विचार व्यक्त किये। आभार ज्ञापन सभा मंत्री बसंत पटावरी ने किया। संचालन मुनिश्री परमानंद जी ने किया।

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