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आचार्यश्री तुलसी का 111वें जन्म दिवस का आयोजन : केलवा

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शासनश्री मुनि श्री रविंद्र कुमार जी एवं मुनि श्री अतुल कुमार जी के सान्निध्य में आचार्य श्री तुलसी के 111वें जन्म दिवस का आयोजन हुआ। मुनि श्री अतुल कुमार जी ने कहा आचार्य तुलसी में महावीर की मैत्री, कृष्ण की अनासक्ति, राम की मर्यादा और बुद्ध सी करुणा का साक्षात्कार था। आचार्य तुलसी मितभाषी थे। आवश्यकता से भी कम कहना किंतु अपनी भाव-भंगिमा से अनपढ़ व नासमझ को भी समझा देने की उनमें विलक्षण प्रतिभा थी। आंखों-आंखों में बात कह जाना, इस विषय में कहा जाता है कि आचार्य तुलसी की आंख की कोर से संपूर्ण तेरापंथ धर्मसंघ का अनुशासन चलता था। आचार्य तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के नवम आचार्य थे। वह एक संप्रदाय की सीमा में रहकर मानव जाति के लिए काम करने वाले असाधारण इंसान थे। महावीर वाणी का प्रकाश पूरी दुनिया में फैलाना उनका सपना था। जातिवाद और संप्रदाय की दीवारों को ढहाकर मानवजाति को भाईचारे के पवित्र धागे में बांधने का उनके भीतर गजब का जज्बा था। हर व्यक्ति धरती पर जन्म लेता है और उनमें से कुछ शख्स अपने रचनात्मक कार्यों द्वारा जग में अमिट छाप छोड़ देते हैं। उसी कड़ी में एक नाम है युगदृष्टा आचार्य तुलसी।
आचार्य तुलसी का बोलता जीवन था। उन्होंने अपनी सृजनात्मक व रचनात्मक शैली से दुनिया को नयी राह दिखाकर एक अनोखा काम किया। किशोरावस्था में दीक्षा का वरण कर 22 वर्ष की युवा अवस्था में तेरापंथ जैसे अद्वितीय धर्मसंघ का दायित्व संभाल लिया। गुरुदेव तुलसी ने जो भी सतरंगी सपने संजोए उन सभी को साकार किया। उन्होंने मानव को मानवता का आकार दिया। उनकी आंखों में शनि था। कठिन से कठिन परिस्थितियां भी उनके फौलादी साहस से टकराकर अपना अस्तित्व खो देती थी। उनका अनुशासन का तरीका अपने आप में अद्भुत था। उनकी चिंतन की शैली विलक्षण थी। मुनि श्री रविंद्र कुमार जी ने मंगल पाठ सुनाया। मोटी बाई कोठारी, शांता देवी मादरेचा एवं पुष्पा देवी मादरेचा ने गीतों की प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम में काफी अच्छी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

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