साध्वीश्री गुप्ति प्रभाजी आदि ठाणा-4 के सान्निध्य में आचार्य श्री तुलसी का 111वां जन्म दिवस अणुव्रत दिवस के रूप में मनाया गया। साध्वी श्री गुप्ति प्रभा जी ने राष्ट्रसंत तुलसी को अपनी भावांजली अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य श्री तुलसी का जीवन एक ऐसे सिनेमा के जैसे था, जिसकी रिल निरंतर चलती रहती थी। वे पुरूषार्थ के देवता थे। दुनिया में आठ प्रकार के मोती बताये गये हैं, जिनमें सर्वश्रेष्ट होता है मेघ मोती। कहा जाता है शताब्दी में एक बार वह मोती धरती की ओर गिरता है, तब देवता उसे थाम लेते हैं। यदि वह मोती धरती पर गिर जाए, तो सारी धरती प्रकाशमान हो जाए। आचार्य श्री तुलसी मेघ मोती के तुल्य थे, जिन्होंने अपने पुरुषार्थ से मानव जाति को प्रकाशित किया। साध्वी मौलिकयशा जी व साध्वी भावितयशा जी ने शब्द चित्र के द्वारा अपने भावों की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का मंगलाचरण साध्वी श्री भावितयशा जी ने गीतिका के माध्यम से किया। कार्यक्रम में सभा के अध्यक्ष नेमीचंद जी गेलड़ा, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष मनीष जी सुराणा, बालचंद जी बेताला, दीपचंद जी गेलड़ा, श्रीमती मंजू जी कोटेचा, प्रदीप जी छाजेड़, तापुर व कनिष्का कोटेचा ने अपने भावों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन रश्मि गेलड़ा द्वारा किया गया।
