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भगवान् महावीर के 2551वें निर्वाण दिवस का आयोजन : अररिया कोर्ट

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अररिया कोर्ट स्थित तेरापंथ सभा भवन में मुनिश्री आनंद कुमार जी ने ‘कालू’ ठाणा-2 के पावन सान्निध्य में भगवान् महावीर का 2551वां निर्वाण दिवस त्याग, तपस्या, संयम के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मुनिश्री के महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। तत्पश्चात मुनिश्री ने ‘आओ दीवाली मनावां’, ‘आपां वर्धमान गुण गावा’: सुमधुर ध्वनि के साथ गीतिका प्रस्तुत कर उपस्थित श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।
इस अवसर पर ‘महावीर स्वामी केवलज्ञानी गैतम स्वामी चउनाणी’ जप अनुष्ठान में 51 दंपति ने बड़े उत्साह व उमंग के साथ भाग लिया। महिलाएं लाल चुनरी साड़ी और पुरुष श्वेत परिधान मे सभी दंपतियों के जोड़े देखने लायक ही बन रहे थे। मुनिश्री ने सभी दंपतियों को जोड़ों के साथ खड़ा किया। सभी दंपति ने मन में खुशियों की का दिवाली आनंद ले रहे थे। मुनि श्री विकास कुमार जी ने जय महावीर भगवान की गीतिका के संगान के साथ मंगल भावना का जप के साथ इस अनुष्ठान को संपन्न करवाया।
मुनि श्री आनंद कुमार जी ‘कालू’ ने उपस्थित श्रावक समाज को दीपावली के पावन अवसर पर ‘वृहद् मंगल – पाठ’ सुनाया। इस अवसर पर मुनिश्री ने अपने मंगल पाथेय में कहा कि दीपावली सिर्फ बाहरी प्रकाश के आवरण में स्वय को आनंदित करने का नाम नहीं, बल्कि आंतरिक प्रकाश की अमा से स्वयं के अंतर्मन को दीप्त करने का सुखद अवसर भी है।
उन्होंने कहा कि कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को भगवान ने अनशन कर लिया। अंतिम समवसरण जुड़ा। केवल चार घड़ी शेष थी, अमावस की रात। देशना प्रवहमान थी। सतत धर्म जागरणा चल रही थी। काशी के नौ मल्लवी राजा और कौशल के नौ लिच्छवी राजा पौषधोपवास के साथ भगवान की देशना सुन रहे थे। जिज्ञासाओं का समाधान पा रहे थे। उस समय भगवान के दो दिन का उपवास (बेला) था। अंतिम देशना पुण्य और पाप के परिणामों से संबंधित थी।
स्वाति नक्षत्र के साथ भगवान के निर्वाण का समय निकट आ गया। शरीर के स्पन्दन शान्त होने लगे। काययोग, वचनयोग और मनोयोग का निरोध हुआ। आभामंडल भीतर समा गया।
१६ प्रहर के अनशन के साथ भगवान का पर्यंकासन में निर्वाण हो गया।सम्पूर्ण भरत क्षेत्र एक साथ अंधकार से भर गया। पूर्ण वसुन्धरा से एक दिव्य ज्योति विदा हो गई। सबका मन उदास हो गए। मल्लवी और लिच्छवी १८ गण राजाओं ने इस अंधकार को बाहर से कम करने के लिए दीपों से उजाला किया। इस दिन को प्रतिवर्ष मनाने की घोषणा की। निर्वाण महोत्सव मनाने के लिए देव-देवियों का भारी आवागमन हुआ। विमानों की ज्योति से कार्तिक अमावस की रात जगमगा उठी। इसी दिन की स्मृति में दीपमाला मनाई जाती है।
यों तीर्थंकर के निर्वाण का समय सम्पूर्ण सृष्टि के लिए सुख-शान्तिदायक होता है। क्षण भर के लिए नारकीय जीवों को भी स्वर्गीय-सुख मिलता है। प्रातः होते ही चन्दन की चिता में भगवान के शरीर का दहन संस्कार कर दिया। वह राख इन्द्र द्वारा क्षीर समुद्र में विसर्जित कर दी गई। कहते हैं, उस दिन अनेक सूक्ष्म कुन्यु जीव धरती पर बरसे। यह देखकर अनेक साधु-साध्वियों ने अनशन कर लिया। ईसा पूर्व ५२७, एवं विक्रम संवत् पूर्व ४७०, का समय अरिहन्तों, तीर्थकरों की सन्निधि से रिक्त हो गया। उस रिक्तता को भरने के लिए अनेक दीप भी पर्याप्त नहीं होते। अब कौन संभालेगा इस महाप्रभु के संघ का दायित्व! इस ओर गया सब का ध्यान। गौतम की याद आई।
गौतम स्वामी को अमावस-सन्ध्या के समय भगवान ने वेदज्ञ ब्राह्मण सोम शर्मा को प्रतिबोध देने के लिये भेजा। जिस कार्य सम्पादन के लिए भगवान ने भेजा था, वह कार्य सानन्द सम्पन्न हो गया। इसके तुरन्त बाद वे भगवान के पास जाने की सोच ही रहे थे कि समाचार मिला, प्रभु का निर्वाण हो गया है। यह सुनते ही गौतम स्वामी स्तब्ध रह गए। हाय! प्रभु ने यह क्या किया? जो जीवनभर साथ रहा, उसे अंतिम समय दूर क्यों भेजा। मुझे कल्पना भी नहीं थी कि भगवान मेरे साथ ऐसा व्यवहार करेंगे। सोम शमा के यहाँ तो कभी भी भेजा जा सकता था। खैर, मेरे मन में आकर्षण, अनुराग होने से क्या हो, भगवान के मन में भी तो मेरे प्रति अनुराग होना चाहिए था।
इस प्रकार प्रभु को उलाहना देते देते गौतम को विचार आया कि तू किससे तर्क कर रहा है? भगवान तो वीतराग थे। तू स्वयं क्यों नहीं बन जाता वीतराग। भगवान ने संभव है, मेरे मोह को भंग करने के लिए ही ऐसा किया हो।
अब क्या देर थी। चिन्तन की गाड़ी पटरी पर आते ही चल पड़ी। गौतम को केवलज्ञान सूर्य के दर्शन हुए। वह एकम का प्रभात केवल ज्ञान रश्मियों से जगमगा उठा। वह दिन गौतम ज्ञान प्रतिपदा के नाम से प्रख्यात हुआ। गौतम, भगवान के प्रथम गणधर थे परन्तु भगवान के निर्वाण के बाद वे तत्काल केवली हो गए, इसलिए वे उत्तराधिकारी नहीं बने, क्योंकि केवली यह नहीं कहते कि भगवान ने ऐसा कहा है, किन्तु केवली इस भाषा में बोलते हैं, मैंने ऐसा देखा है, इसलिए मैं कहता हूँ। तब सुधर्मा को आचार्य-पद का दायित्व दिया गया। इस अवसर पर काफी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।
मुनि श्री आनंद कुमार ‘कालू’ के द्वारा मंगल पाठ से कार्यक्रम समापन हुआ।

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