मुनिश्री प्रशांत कुमारजी, मुनि श्री कुमुद कुमारजी के पावन सान्निध्य में 2551वां श्री वीर निर्वाण संवत् के शुभारंभ के अवसर पर महामंगल पाठ आयोजित हुआ। जनसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री प्रशांत कुमारजी ने कहा कि जैन धर्म अपने आप में महान है। महान इसलिए क्योंकि तीर्थंकर नेतृत्व करने वाले होते हैं। वे तीर्थ-संघ की स्थापना करते हैं। वर्तमान में प्रभु महावीर का शासन चल रहा है। जैन धर्म अनादि काल से चल रहा है। उनके द्वारा बताए मार्ग पर चलने से जीवन का कल्याण होता है। आध्यात्मिक विकास होता है। सभी तरह का विकास होता है। देवी-देवता भी हमारी आध्यात्मिक साधना में सहयोगी बनते हैं। तीर्थंकर की शक्ति अपार होती है उनके स्मरण से हमारा सब कुछ मंगल होता है। देवी-देवता, ग्रह-नक्षत्र का दुष्प्रभाव कम होता है। तीर्थंकर परमात्मा के प्रति श्रद्धा रखने से मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। प्राचीन मंत्रों के आराध्य तीर्थंकर होते हैं। मंत्रों के स्मरण से पापकर्म दूर होते हैं। अशुभ कर्म दूर तथा शुभ कर्मों का बंधन होता है। जीवन में वास्तविक सुख-शांति-समृद्धि चाहते हैं तो तीर्थंकर भगवान के प्रति प्रबल श्रद्धा रखनी चाहिए। जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान मिलता है। 2551वां वीर निर्वाण संवत् आज से प्रारम्भ हो रहा है, हम सभी अपने प्रति मंगल कामना करें कि मैं शारीरिक, मानसिक रूप से स्वस्थ रहता हुआ धर्मसंघ – जिनशासन की प्रभावना में योगभूत बनूंगा। ये मंगल मंत्र हमारे जीवन को निर्विघ्न बनाएं, हमें सुखी, संतोषी एवं सक्षम बनाएंगे। भक्तामर, लोगस्स, णमोत्थुणं, उवसग्गहर स्तोत्र एवं विभिन्न मंत्र, श्लोक, का सामूहिक रूप से संगान किया।
मुनिश्री कुमुद कुमार जी ने कहा कि अपने आपको भावित करें यह मंगल मंत्र, श्लोक, स्तुति मेरे जीवन के कल्याण के निमित्त बनेंगी। मेरा मन, विचार, भविष्य सभी मंगलकारी बनें। मंत्र की शक्ति प्रबल होती है। प्रभु महावीर ने आत्मा की विशुद्धि के लिए साधना की, ध्यान-तप के साथ जुड़कर कर्मों का क्षय किया, वैसे ही हम सभी आत्मविकास के लिए पुरुषार्थ, प्रयास करते रहें। श्री वीर निर्वाण संवत् सबसे प्राचीन है। हिंसा के द्वारा स्वयं का जीवन कभी भी मंगलमय नहीं हो सकता। हम अपने साथ दूसरों के भी मंगल की कामना करें। तेरापंथ युवक परिषद्, कोकराझार के सदस्यों ने गीत की प्रस्तुति दी।
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