मुनिश्री रश्मि कुमार जी व मुनिश्री प्रियांशु कुमार जी के सान्निध्य में स्थानीय तेरापन्थ भवन में आयोजित नवरात्री अनुष्ठान में मुनि श्री रश्मि कुमार जी ने अपने प्रवचन में नवरात्री पर इन छः संम्पत्तियों की व्याख्या की है – मन की शांति, स्वनियंत्रण, आत्मत्याग, सहिष्णुता, आस्था. और एक लक्ष्य केन्द्रिकता। हमारा परम लक्ष्य है-मन पर विजय प्राप्त करना। शास्त्रों में धनुर्विद्या, वास्तुविद्या, अर्थशास्त्र, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे बहुत सारे ज्ञानों का वर्णन है पर वास्तविक ज्ञान – आध्यात्मिक ज्ञान है। गीता में कहा भी है कि स्वयं का ज्ञान ही ज्ञान है। कई शास्त्रों और विज्ञानों का ज्ञान हो सकता है पर स्व का ज्ञान नहीं है तो हमारा सबसे बड़ा नुक्सान है। नवरात्र में सबसे पहले दुर्गा का आह्वान का अर्थ मन की अशुद्धियों को दूर करे। फिर लक्ष्मी का आह्वान महान गुणों और योग्यताओं के लिए किया जाता है। अंत में स्व के सर्वाेच्च ज्ञान के लिए सरस्वती का आह्वान होता है। सर्वाेच्चज्ञान की प्रतिनिधि देवी है-सरस्वती । इस तरह तीन रात्रियों के तीन चरणों का महत्त्व है। जिसके बाद आती है विजया दशमी यानी विजय का दिन, विजय का उत्सव। इसके साथ हैं-मुनि श्री ने जैन शास्त्रों में नवरात्र का वर्णन और महत्व के बारे में भी बताया। मुनि श्री प्रियांशु कुमार जी ने जैन धर्म के भक्ति वाद लोगस्स महासूत्र पर अपने विचार रखें। नवरात्रि के दौरान तप आराधना का भी अनूठा आयोजन हुआ जिसमें १३५ एकासन, २ सामायिक पचरंगी, सैकडों सामायिक के साथ और ३५ आयंबिल तप की आराधना हुई। मुनि श्री रश्मि कुमार जी ने ‘नमिउण’ मंगल मंत्र की आराधना कराते हुए मंगल पाठ के साथ नवरात्री अनुष्ठान संपन्न करवाया। समस्त श्रावक-श्राविका समाज की अच्छी उपस्तिथि रही।
