शासनश्री साध्वी श्री विद्यावतीजी ‘द्वितीय’ ठाणा-5 के सान्निध्य में दादर तेरापंथ भवन में प्रातः 9.०० बजे से शाम 4.00 बजे तक भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा निर्देशित एवं स्थानीय दादर तेरापंथ युवक परिषद द्वारा आयोजित इस एक दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ साध्वीवृंद के नमस्कार महामंत्र से हुआ। तेरापंथ युवक परिषद ने विजय गीत से मंगलाचरण किया। तेयुप अध्यक्ष नीतेश भंसाली ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया। साध्वी ऋद्धियशाजी ने अपने वक्तव्य में आचार्य भिक्षु द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों में से लौकिक एवं लोकोत्तर धर्म का विस्तृत विवेचन किया। सोलापूर से प्रशिक्षक के रूप में समागत उपासक संस्कारक राजेशजी छाजेड ने कार्यशाला की पूर्व भूमिका प्रस्तुत कर प्रारूप समझाया।
साध्वीश्री प्रियंवदाजी ने कहा कि तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने धर्म अधर्म का सुंदर विवेचन किया। भिक्षुस्वामी ने कहा बल प्रयोग, प्रलोभन में धर्म नहीं बल्कि हृदय परिवर्तन में धर्म है। हिंसक को समझाकर हिंसा से विरत करना चाहिए। साध्वी श्री विद्यावतीजी ने उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु क्रांतिकारी एवं दूरदर्शी थे। उन्होंने व्रत-अव्रत, त्याग-भोग, हिंसा-अहिंसा, आज्ञा-अनाज्ञा अध्यात्म एवं व्यवहार के भेद को खुलकर समझाया। जो धर्म शुद्ध है, नित्य है एवं शाश्वत है वह अहिंसा है। दुराग्रह से दूर रहकर सत्य को समझने का प्रयास करना चाहिए।
साध्वीश्री प्रेरणाश्रीजी एवं साध्वीश्री मृदुयशाजी ने मधुर गीत का संगान किया। चार सत्र में विभाजित कार्यशाला में राजेशजी छाजेड ने अत्यंत रोचकता के साथ आचार्य भिक्षु के गहन सिद्धांतों का विश्लेषण किया। युवाओं को सरल भाषा में समझाकर उनको आचार्य भिक्षु को पहचानने का आहवान किया। धाराप्रवाह वक्तव्य से उपस्थित जन समुदाय के हृदय को झकझोर दिया। राजेशजी की बोलने की शैली सरल एवं रोचक थी। इतने लंबे समय तक लोगों को बैठने के लिए वक्तव्य से मजबूर कर दिया। राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्री नरेश सोनी, आचार्य श्री महाश्रमण युवा व्यक्तित्व पुरस्कार से अलंकृत अभातेयुप प्रबुद्ध विचारक श्री देवेंद्र डागलिया, अभातेयुप से श्री कमलेश भंसाली, अमित जी रांका, श्री रविजी दोषी, श्री प्रशांत तातेड़, श्री मयंक धाकड की उपस्थिति रही। कार्यक्रम को सफल बनाने में दादर-तेयूप, महिला मंडल, सभा किशोर मंडल के सभी कार्यकर्ताओं का सहयोग रहा।
