शहर के महाप्रज्ञ विहार में शासनश्री मुनिश्री सुरेश कुमार के सान्निध्य में तेरापंथ युवक परिषद्, उदयपुर द्वारा आयोजित भक्तामर महा अनुष्ठान में युवा दंपतियों ने सामूहिक आराधना संपन्न की सुबह छह बजे शुरू हुए कार्यक्रम में अनुष्ठान आराधको ने मुनि संबोध कुमार मेधांश के निर्देशन में ऋद्धि सिद्धि मंत्रों के साथ भक्तामर का महा अनुष्ठान किया।
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में मुनि संबोध कुमार मेधांश ने कहा कि भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महत्वपूर्ण सूत्र है, यह बसंत तालिका चंद में लिखा गया संस्कृत स्तोत्र है जिसमें 2688 अक्षर और 4032 मात्राएँ है। राजा भोज ने चमत्कार की परीक्षा लेने आचार्य मानतुंग को कारागृह में क़ैद कर दिया था। आचार्य ने भावपूर्वक आदि तीर्थंकर की स्तुति करते हुए जेल में एक एक श्लोक की रचना की और परिणाम स्वरूप एक-एक जेल के ताले टूटते चले गये। जो भी इस स्तोत्र का मनोयोगपूर्वक अनुष्ठान करता है, सिद्धिया स्वयं उसके दरवाज़े पर दस्तक देती है।
मुनिश्री सिद्धप्रज्ञ जी ने स्तोत्र साधना विधि का उल्लेख करते हुए कहा- उक्त स्तोत्र को पढ़ने का समय सूर्याेदय सर्वाेत्तम होता है। वर्ष भर निरंतर पढ़ने से अपूर्व सिद्धिया प्राप्त होती है। भगवान महावीर निर्वाण के हज़ारो वर्ष बाद आचार्य मानतुंग ने इस महान स्तोत्र की रचना की। जो आज भी सृष्टि में लोकप्रिय व चमत्कारी है। उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसे देशों में इस स्तोत्र से रोगों की चिकित्सा की जा रही है
परिषद प्रबंध मण्डल द्वारा प्रभु पार्श्व स्तुति के साथ शुरू किए कार्यक्रम में तेरापंथ सभा अध्यक्ष कमल नाहटा, परिषद उपाध्यक्ष अशोक चोरडिया, ने स्वागत, मंत्री साजन मांडोत ने आभार व्यक्त किया।
मंच संचालन कार्यक्रम संयोजक अविनाश पोखरणा, महावीर राठौड़, प्रणय फत्तावत ने किया। कार्यक्रम के प्रायोजक श्रीमती पुष्पा विपिन नितिन कोठारी थे। इस अवसर पर सभी दंपतियों ने भक्तामर यंत्र और लौंग को आराधना द्वारा सिद्ध किया। पुरुष श्वेत व महिलाएं चुनड़ परिधान में सहभागी बनी।
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