तेरापंथ सभा भवन में मुनिश्री सुमति कुमार जी ठाणा -3 के सान्निध्य मे आत्म विमोचन कार्यशाला रखी गई। कार्यशाला का शुभारम्भ मुनि श्री सुमति कुमार जी द्वारा नमस्कार महामंत्र के द्वारा किया गया। उसके बाद महिला मंडल द्वारा मंगलाचरण किया गया। मुनिश्री आगम कुमार जी द्वारा मन को एकाग्र और शान्त करने के लिए जप अनुष्ठान करवाया गया। मुनिश्री देवार्य मुनि ने बताया कि अपनी आत्मा की शक्ति को पहचाने स्वयं की आत्मा ही सबसे बड़ी शक्ति होती है।
सम्यकत्व की प्राप्ति के लिए अपनी री शक्ति को पहचानना होगा, मुनि श्री ने इसे गणेश जी एवं चुहे की कहानी द्वारा समझाया। तथा यह भी बताया कि हमारी आत्मा की छिपी शक्ति को कैसे उजागर कर सकते हैं। उसे क्षमा के द्वारा, सम्यकत्व के द्वारा उजागर कर सकते हैं। ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। सम्यकत्व के पांच लक्षणों के बारे मे बताया।
मुनिश्री सुमति कुमार जी ने रविन्द्रनाथ टैगोर के बारे में बताते हुए कहा कि वे काव्य चेतना के धनी थे। एक बार उनका अपने पड़ोसी के साथ किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को हरपल रह रहकर दिमाग में उस पड़ोसी के बारे में विचार आ रहे थे तब उन्होंने सोचा कि क्यों न मैं ही जाकर माफी मांग लेता हूं उसी समय उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। कहने का मतलब है कि क्षमा करने से हम हमारी शक्ति को जागृत कर सकते हैं। क्षमा करने से आल्हाद का भाव आता है मन प्रसन्न हो जाता है। तपस्या से भी हम अपनी आत्मा की शक्ति को जागृत कर सकते हैं।इसी कार्यक्रम के उपलक्ष में बहन श्रीमती मैना देवी गादिया के 52 की तपस्या के उपलक्ष में तप के द्वारा तप की अनुमोदना में 108 नीवी तप का आयोजन किया गया। सभी ने बड़े उत्साह से नीवी तप में सहभागिता रही।
मुनिश्री कहा कि हमारा मनोबल अगर मजबूत है तो मनुष्य कुछ भी कर सकता है। आचार्यश्री ने कहा है कि मनुष्य अपने आपको देखे, अपने आपको सुधारे व स्वयं झुके एवं दुसरो को क्षमा करें। सुई दो को जोड़ कर एक करती है और कैंची एक को दो करती है हमें एक दुसरे को जोड़ना है सुई बनना है। ये भाव अगर आते हैं तो वहां पर आत्म विमोचन होता ही होता है।
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