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जीवन विज्ञान दिवस का आयोजन : अररिया कोर्ट

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शहर के अररिया कोर्ट स्थित तेरापंथ सभा भवन में अणुव्रत उद्बोधन के अंतर्गत सातवें दिन जीवन विज्ञान दिवस के रूप में मनाया गया। मुनि श्री आनंद कुमार जी ‘कालू’ ठाणा -२ के पावन सान्निध्य में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत सातवें दिन जीवन विज्ञान दिवस के रूप में स्थानीय तेरापंथ भवन में मनाया गया। कार्यक्रम का शूभारंभ मुनिश्री के महामंत्रोच्चार से हुआ। तत्पश्चात तेरापंथ महिला मंडल की सरिता बेगवानी, उपाध्यक्ष चंदा चिंडालिया, तेरापंथ कन्या मंडल प्रभारी ज्योति बोथरा ने जीवन-विज्ञान गीत से मंगलाचरण किया।
इस अवसर पर तेरापंथ सभा के अध्यक्ष श्री धर्मचंद जी चोरडिया, तेरापंथ महिला मंडल की मंत्री श्रीमती सुरभि दुगड़, सहमंत्री श्रीमती कांता बेगवानी, ज्ञानशाला की प्रशिक्षिका श्रीमती ब्यूटी बेगवाणी, अणुव्रत समिति के अध्यक्ष श्री भंवर लाल जी बेगवानी एवं पूर्व उपाध्यक्ष श्री महावीर जी अग्रवाल, गिधवास से अध्यापक ज्ञान सागर दास बिहारी सभी ने जीवन विज्ञान दिवस पर अपनी अभिव्यक्ति दी।
मुनि श्री आनंद कुमार जी ‘कालू’ ने शिक्षा आज समस्या बणगी सबकी एक जबान है, समाधान आपां नै मिलग्यो जो जीवन-विज्ञान है, हो सन्तां! संस्कृति-संरचना रो ओ सूत्रधार हो। आचार्य श्री तुलसी द्वारा तेरापंथ -प्रबोध का संघ गान करते हुए कहां की अपने मंगल पाथेय में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा जगत के लिए जीवन विज्ञान जरूरी है। धर्म का आचरण करने से मनुष्य का जीवन बदलता है। प्रेक्षाध्यान जीवन में बदलाव लाने का अनुभूत प्रयोग है। मैं उसको प्रद्योतनात्मजा-सूर्यपुत्री यमुना के रूप में देखता हूं।
शिक्षा को मूल्यपरक और प्रायोगिक बनाने से विद्यार्थी के सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास संभव है। जीवन विज्ञान का कार्यक्रम इसी उद्देश्य से चल रहा है। ब्रह्म पुत्री-सरस्वती विद्या की प्रतीक है। इसलिए जीवन विज्ञान की तुलना उससे की गई है।
मैंने अणुव्रत गंगा, प्रेक्षा यमुना और जीवन विज्ञान सरस्वती-इस त्रिवेणी स्मरण कि गया। जीवन विज्ञान के मूल मंत्र आचार्य महाप्रज्ञ जी ने (विक्रम संवत 2035) 28 दिसंबर ,सन् 1978, लाडनूं में शुभारंभ हुआ। मुनिश्री ने कहा जैन धर्म के प्रभावक आचार्य आचार्य महाप्रज्ञजी ने जीवन-विज्ञान के रूप में एक और नया उन्मेष मानव समाज को दिया। जीवन-विज्ञान के प्रयोग सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास की आदतों के परिष्कार की व भावधारा के परिवर्तन-परिशोधन की अभिनव शैली है एवं जीने की कमनीय कला है। प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान के रूप में आचार्य महाप्रज्ञजी की मानव समाज को विशिष्ट देन है।
जैन विश्व भारती के शोध, साहित्य, शिक्षा, साधना, प्रवृत्ति ,अध्यात्म प्रवृत्तियों में आचार्य महाप्रज्ञजी का व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व विशेष रूप से मुखरित हुआ।
तेरापंथ धर्मसंघ के संगठन को सुदृढ़ बनाने में भी आप सदा प्रयत्नशील रहे। समय-समय पर नये-नये आयाम उद्घाटित कर धर्मसंघ को अधिक शक्ति सम्पन्न बनाया। उन्होंने कहा कि नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों अथवा चरित्र विकास के लिए नकारात्मक भावों का परिष्कार और नियंत्रण आवश्यक है। नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के अनेक वर्ग हैं। उनका हास करने वाले अनेक आवेशपूर्ण भाव हैं। उनके विकास के भी अनेक उपशान्त भाव हैं। जीवन विज्ञान का उद्देश्य है चेतना का रूपांतरण, आवेशपूर्ण भावों को उपशान्त भावों में बदलना। जीवन विज्ञान की इस पृष्ठभूमि को हृदयंगम कर लेने के बाद रूपान्तरण की पद्धति को समझना आवश्यक है। रूपान्तरण के लिए विद्यार्थी को आवेशपूर्ण भावों और उनके परिणामों से परिचित कराना चाहिए, यह जीवन विज्ञान का सिद्धांत पक्ष है। उनके रूपान्तरण के लिए विद्यार्थी को अभ्यास कराना चाहिए, यह जीवन विज्ञान का प्रयोग पक्ष है। जीवन विज्ञान के द्वारा विधेयात्मक भाव का विकास कर निषेधात्मक भाव से मुक्ति पाई जा सकती है। जीवन विज्ञान मस्तिष्क प्रशिक्षण की पद्धति है। उसके तीन अंग हैं १. नियंत्रण १. जागरण ३. विकास १. नियंत्रण १. संवेग नियंत्रण २. संवेद नियंत्रण ३. शरीर नियंत्रण। २. जागरण १. चौतन्य केन्द्र जागरण २. स्वभाव परिवर्तन की शक्ति का जागरण। ३. विकास १. सामुदायिक चेतना का विकास २. रचनात्मक शक्ति का विकास। इसके साधक तत्व पांच है, १. शवास प्रेक्षा २. शरीर प्रेक्षा ३. चौतन्य केन्द्र प्रेक्षा ४. अनुप्रेक्षा संदेश और अनुचिंन्तन ५. लेश्याध्यान आभामंण्डल का ध्यान, सर्वांगीण विकास के लिए चार बातें आवश्यक हैं १. शारीरिक विकास २. मानसिक विकास ३. बौद्धिक विकास ४. भावनात्मक विकास। आज के विद्यालयों में बौद्धिक विकास पर्याप्त मात्रा में कराया जाता है और शारीरिक विकास के प्रयास भी चलते रहते हैं। किन्तु मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए बहुत कम संभावनाएं रहती हैं। इन दोनों का विकास होना आवश्यक है। इसके विकास का मूल उपाय है संवेगों का परिष्कार।
ज्ञानशाला की मुख्य प्रशिक्षिका श्रीमती माला छाजेड़ का सम्मान तेरापंथ सभा के अध्यक्ष श्री धर्मचंद जी चौरडिया, श्रीमती सुरभि दुगड़ का सम्मान अणुव्रत समिति के अध्यक्ष श्री भंवर लाल जी बेगवानी, श्रीमती ब्यूटी बेगवाणी का सम्मान नेपाल बिहार के उपाध्यक्ष शांतिलाल जी बरडिया, श्रीमती पूजा नाहटा का सम्मान नेपाल बिहार के पूर्व अध्यक्ष भैरूदान जी भूरा, श्रीमती कविता बोथरा का सम्मान श्री अभयराज जी संचेती, अणुव्रत समिति के परामर्शक कमल जी चोरडिया का सम्मान भंवर लाल जी बेगवानी, अणुव्रत समिति के पूर्व उपाध्यक्ष महावीर जी अग्रवाल का सम्मान श्री निर्मल जी बेगवानी, ज्ञान सागर जी दास का सम्मान श्री महावीर जी अग्रवाल ने किया।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अन्तर्गत सातवें दिन जीवन विज्ञान दिवस पर गिदवास से योगेंद्र दास जी (बिहारी) उनके तीन पुत्र सुमित दास, सागर दास, विवेक दास मुनि श्री के श्री चरणों में उपस्थित हुए। मुनि श्री आनंद कुमार जी की विशेष प्ररेणा से आजीवन नशामुक्त जीवन जीने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम में स्वागत व आभार प्रकट करते हुए मंच का कुशल व सफल संचालन अणुव्रत समिति के मंत्री नितिन दूगड़ ने किया। कार्यक्रम का समापन मुनि श्री आनंद कुमार जी ‘कालू’ के मंगल पाठ से हुआ।

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