संविधान, संघ, संस्था या राष्ट्र को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्राण तत्व होता है विधान। विधान या मर्यादा का अर्थ होता है अनुशासन। अनुशासित मर्यादित जीवन विकास के शिखरों को छूता है। तेरापंथ के सर्वाेन्मुखी विकास की वजह अनुशासन और मर्यादा है। संघीय मर्यादाएं लक्ष्मण रेखा की तरह संयमित जीवन की रक्षा करती है, तेरापंथ धर्म को जितना हमने समझा उसका मुख्य आधार यह है कि तेरापंथ शासन में आज्ञा का सर्वाेच्च स्थान है। जैन धर्म भगवान महावीर से जुड़ा है, इनका एक संप्रदाय तेरापंथ धर्म भी है जो कि सबसे ज्यादा मर्यादित संगठन है। एक गुरु, एक विधान, इस विचार के आधार पर तेरापंथ कार्य करता है। देश में बहुत सी व्यवस्थाएं हैं जो नियमों के उल्लंघन से उपजी हैं। नियमों का पालन डंडे के जोर पर नहीं, हृदय परिवर्तन व समर्पण से हो सकता है। ये शब्द मनीषी संत मुनिश्री विनयकुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत सप्ताह के छठे दिन अनुशासन दिवस पर अणुव्रत भवन, तुलसी सभागार में संबोधित करते हुए कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा कि तेरापंथ समाज मर्यादाओं का निर्वाह करता है इसलिए हर साल मर्यादा महोत्सव मनाया जाता है। मर्यादा महोत्सव तेरापंथ धर्मसंघ का महत्वपूर्ण पर्व है। मर्यादा महोत्सव सारणा-वारणा का प्रतीक है। मर्यादा और अनुशासन की जो व्यवस्था आचार्य भिक्षु ने दी, आज वह तेरापंथ का प्राण है, उनके विराट, भव्य विशाल व्यक्तित्व को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता, साधु-साध्वियों एवं सभी श्रावकों का यह स्पष्ट विचार है कि आचार्य भिक्षु का श्रद्धाबल, आगम ज्ञान बल एवं समता सहिष्णुता बल बेजोड़ था, संघ कभी नहीं बदलता, संघपति बदलते रहते हैं, निष्ठा संघ के प्रति होनी चाहिए, उसके बाद संघपति के प्रति निष्ठा रखें। मर्यादा महोत्सव क्यों मनाया जाता है, इसका जवाब है यदि मर्यादा नहीं होगी तो साधु-श्रावक भटक जाएगा, मर्यादा महोत्सव से मर्यादाओं का निरंतर स्मरण होता रहेगा और उसकी अच्छी तरह पालना हो सकेगी, जिस तरह ओजोन परत के कारण पर्यावरण सुरक्षित है, ठीक उसी तरह मर्यादा के कारण ही जीवन सुरक्षित है। आचार्य की आज्ञा के अनुरूप साधु-साध्वियां व श्रावक-श्राविकाएं चलते हैं, गुटबाजी, दलबंदी से दूर रहते हैं, इतने बरसों बाद भी संघ अखण्ड इसीलिए है कि मर्यादाएं हैं, श्रद्धा, समर्पण, विवेक, संघ और संघपति के प्रति अटूट भावना रखने वाला ही असल मायने में तेरापंथी होता है, आज तेरापंथ जितना आगे है, उसके अतीत में कई संत-साध्वियों की मेहनत है। आचार्य भिक्षु की लकीरों पर चलते हुए आज तेरापंथ धर्मसंघ यहां तक पहुंचा है।
मनीषीसंत ने अंत मे फरमाया अगर जीवन में मर्यादा नहीं हो तो सब बेकार है। मर्यादा सिर्फ शक्ति संपन्नता के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए होती है। मर्यादा पत्र सभी मनुष्यों का प्राण है, सर्वविदित है कि कोई भी काम होता है तो उसमें मर्यादा अपेक्षित होती है। तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक मौलिक मर्यादाएं बनाई गई, जिनमें अभी तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
लेटेस्ट न्यूज़