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अनुशासन दिवस का आयोजन : जसोल

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मुनिश्री यशवन्तकुमार जी एवं मुनिश्री मोक्षकुमार जी के पावन सान्निध्य में स्थानीय पुराना ओसवाल भवन मे रविवार को सुबह 9ः30 बजे अणुव्रत समिति के तत्वाधान मे अणुव्रत उद्बोधन का छठा दिन अनुशासन दिवस के रूप मे मनाया गया।
सर्वप्रथम नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम शुभारंभ हुआ। मंगलाचरण ‘संयममय जीवन हो’ गीत संगान अणुव्रत समिति के प्रचार प्रसार मन्त्री डुंगरचन्द बागरेचा के द्वारा किया गया। स्वागत भाषण अणुव्रत समिति के अध्यक्ष पारसमल गोलेच्छा दिया। आगे अध्यक्ष गोलेच्छा ने कहा कि अगर हम अनुशासन के प्रकारोें की बात करे तो इसे दो प्रकार है। पहला है, प्रेरित अनुशासन! दुसरा है , स्वः अनुशासन! प्रेरित अनुशासन वह होता है, जो दुसरे हमे सिखाते है या हम दुसरो को देखकर सिखते है, जबकि सवः अनुशासन हमरे भीतर से आता है, हम इसे खुद से सीखते है। स्वः अनुशासन के लिए दुसरों से बहुत प्रेरणा और समर्थन कि आवश्यक होती है, आज अनुशासन की आवश्यकता है, हम जीवन में लगभग हर जगह अनुशासन चाहते है। इसलिए अपने जीवन के शुरुआती चरणों से ही अनुशासन का अभ्यास करना अच्छा है। अणुव्रत प्रभारी श्रीमति लीला सालेचा ने कहा कि अनुशासन एक ऐसी चीज है जो हर व्यक्ति को नियंत्रण मे रखती है, यह व्यक्ति को जीवन मे आगे बढने के लिए प्रेरित करती है हर कोई अपने जीवन मे अनुशासन का अलग अलग रूप मे पालन करता है, हालाँकि हर किसी के पास अनुशासन की अपनी संभावनाएं होती है कुछ लोग इसे अपने जीवन का हिस्सा मानते है, मुनिश्री यशवन्तकुमार अपने ने उद्बोधन में कहा कि अनुशासन आज परिवार समाज एवं राष्ट्रीय सभी के लिए आवश्यक है व्यक्ति पहले स्वयं पर अनुशासन करें फिर दूसरों को अनुशासित कर सकता है। गुरुदेव आचार्य तुलसी द्वारा दिया नारा निज पर शासन फिर अनुशासन सार्थकता बताते हुए कहा कि अणुव्रत के नियम हमें अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा देता है जो सहन करना जानता है। वही अनुशासन रह सकता है और अनुशासन कर भी सकता है आज तेरापंथ धर्म संघ में मर्यादा और अनुशासन ही प्राण तत्व है। आवश्यकता है कि पहले हम स्वयं अनुशासित हो फिर दूसरा पर अनुशासन करें।
कार्यक्रम का संचालन अणुव्रत समिति के मन्त्री सफरुखान ने किया। साथ ही सभी जनो को संयम के संकल्प पत्र भरवाए गए। इस अवसर तेरापंथ सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, अणुव्रत समिति आदि सदस्यगण उपस्थित थे।

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