मुनिश्री यशवन्तकुमार जी व मुनिश्री मोक्षकुमार जी के सान्निध्य मे स्थानीय पुराना ओसवाल भवन मे गुरुवार को प्रातः दस बजे अणुव्रत समिती जसोल के तत्वावधान में अणुव्रत उद्बोधन का तीसरा अणुव्रत प्रेरणा दिवस के रूप मे मनाया गया। सर्व प्रथम नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम शुरुआत हुआ, मंगलाचरण संयममय जीवन हो अणुव्रत समिति के प्रचार प्रसार मंत्री डुंगरचन्द बागरेचा ने किया व स्वागत भाषण अणुव्रत समिति अध्यक्ष पारसमल गोलेच्छा ने प्रस्तुत किया। मुनिश्री यशवन्तकुमार जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि राजस्थान के चुरू जिला सरदारशहर कस्बे मे अणुव्रत आंदोलन की स्थापना 01 मार्च, 1949 को हुई। आज भी नैतिक मूल्यो व मानवीय मूल्यो के विकास के लिए चल रहा है। उन्होंने कहा कि अणुव्रत दीपशिखा का काम कर रहा। सब धर्माे का सार है वर्तमान में अणुव्रत प्रांसगिकता बताते हुए उन्होंने कहा कि आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत उद्घोष दिया। सुधरे व्यक्ति, समाज तो व्यक्ति से राष्ट्र स्वयं सुधरेगा, सभी व्यक्तियो को अणुव्रत के दर्शन को समझकर उसे जीवन में अपनाना होगा। उससे व्यक्ति में सुधार होगा जिससे समाज और राष्ट्र में आप सुधार होगा।
अणुव्रत यानि छोटे-छोटे व्रत भगवान महावीर स्वामी ने धर्म की उपासना के लिए दो मार्ग प्रतिपादित किया। जिसमे एक महाव्रत और दूसरा अणुव्रत भगवान महावीर के समय से बारह व्रति श्रावक की शुरू हुई थी और उन बारह व्रत मे शुरू के पांच व्रत अणुव्रत मे आते है। अणुव्रत एक मानवीय धर्म है यह सांप्रदायिकता से परे है, अणुव्रत सिर्फ जैनो तक सिमित नही है, यह एक मानव समाज के लिए अणुव्रत की आवश्यकता, अणुव्रत सिर्फ भारत में नहीं बल्कि पुरे विश्व मे अपने वृहद रूप मे निखरकर सामने आया। कार्यक्रम का संचालन सफरुखान ने किया। इस अवसर पर तेरापंथ सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, अणुव्रत समिति के सदस्यगण उपस्तिथ थे। मुनिश्री यशवन्तकुमार ने मंगलपाठ सुनाकर आशीर्वाद प्रदान किया।
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