चंडीगढ़, 1 अक्तूबर, 2024। जीवन में बहुत कुछ होता है जो नहीं होना चाहिए था पर हम उसे मात्र एक घटना समझ कर भूल जाते है। बहुत कुछ हम महत्वहीन समझकर छोड़ देते हैं या भूल जातें हैं और बाद में यही हमारे दुःख का कारण बनता है। हम अपनी ही कमियों के कारण असफल होते हैं लेकिन सफलता की ज्योति असफलता में ही छिपी रहती है। भय, क्रोध, असफलता आदि बुराईयाँ हम दूर कर सकते हैं। बार -बार कोशिश करें अपनी कमी दूर करने की पर कुछ काम ऐसे होतें हैं जो बार बार नही होते इसमे अगर गलती हो जाय तो कौन पार करे । फिऱ तो अपना धीरज ही काम आता है। ये शब्द
मनीषी संत मुनिश्री विनयकुमार जी ‘आलोक’ ने सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन तुलसी सभागार में कहे।
मनीषीसंत ने आगे कहा कि 100 बार गिर कर भी उठो। आशा का दामन न छोडो। मन की दुर्बलता से लडो सीखो। अपनी प्रसुप्त क्षमता को जगाओ। अपने सोच की सार्थकता सिद्ध करो। आपकी सोच सार्थक है, पवित्र है, कल्याण कारी और उन्नत है तो दृढ़ इक्षा के साथ उसे पूरा करे जरूर पूरा होगा। दृढ़ संकल्प को कोई रोक नहीं सकता। उसे पूरा करने का प्रयास भर पूर होना चाहिए। मानव जीवन तभी श्रेष्ठ है जब वह सफल हो। सफलता की कोई एक परिभाषा नही होती इसके कई आयाम होते है और हर एक के जीवन में इसकी प्राथमिकता भी अलग होती है पर एक बात अटल है की सफलता बिना श्रम ,संघर्ष के नही मिलती और जब मिलती है तो बड़ी सुखद होती है। सफलता से इन्सान ख़ुद को पहचान पाता है। अपने व्यक्तित्व का निर्माता बन जाता है।
मनीषीसंत ने कहा अपनी शक्ति पर भरोसा करें। प्रतिकूलताओं में धैर्य से काम ले, बचकानी हरकतें जैसे झूठी शान दिखाना, ढोंग करना, अपनी असलियत छिपाना, बनावटीपन होना, इतर कर चलना ये सब हरकतें आपके व्यक्तित्व को खराब करती है। इसलिए इनसे दूर रहिये। जो लोग बिना वजह झूठ बोलते है या छल करते हैं उनका कोई विश्स्वास नहीं करता। ऐसे लोगों से सतर्क रहे। परिश्रम और आत्म विश्स्वास से जीवन सफल बनाइये और खुशियां पाइए। अपना पथ स्वयं बनाना पड़ता है
मनीषीसंत ने अंत में कहा कि जब तक हो सके, जितना हो सके सक्रीय बने रहे। कुछ लोग दुःख की स्थिति आने पर बहुत जल्दी अपनी पूर्व स्थिति में चले आतें है। अपनी सक्रियता बनाये रखने के लिए यह जरुरी है । दुःख की अवस्था में बैठे रहने से कुछ नहीं होगा। सक्रियता, स्फूर्ति, प्रफुल्लता, उत्साह, उमंग बने रहने से काम करने की ताकत रहती है और स्वास्थ भी अच्छा रहता है। मानसिक धरातल पुष्ट होने पर ही सफल हो सकते हैं। खुश रहने से उर्जा बनी रहती है । इसलिए किसी भी बात पर तुरत उत्तेजित न हो, क्रोधित न हो। अपनी दिन चर्या ईश नमन से शुरू करें। प्रतिकूलता धैर्य बोध कराती है इसमें सफलता छिपी होती है। बहुत शांत, धैर्यवान और धीर व्यक्ति को सफलता अपना मित्र बनाती है।
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