शासनश्री साध्वीश्री विद्यावतीजी के सान्निध्य में ‘पहचान जैन श्रावक की’ कार्यशाला आयोजित की गई। तेरापंथ महिला मंडल के मंगलाचरण से कार्यशाला प्रारंभ हुई। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष गणेशलालजी कोठारी ने स्वागत वक्तव्य दिया। अर्हम् फाउंडेशन के अध्यक्ष प्यारचंदजी मेहता, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष जयंतीलालजी मादरेचा, तुलसी महाप्रज्ञ फाउंडेशन कांदिवली के अध्यक्ष मेघराजजी धाकड़ ने भी अपने विचार रखे। ज्ञानशाला की बालिकाओं ने सुंदर प्रस्तुति दी। श्रीमती नूतन लोढ़ा ने जैन धर्म पर एवं जैन श्रावक के व्यवहार पर सुंदर विचार प्रस्तुत किए।
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की कोषाध्यक्ष श्रीमती तरुणा बोहरा ने जैन श्रावक की पहचान पर विचार रखते हुए श्रावक के करणीय एवं अकरणीय कार्यों पर प्रकाश डाला। साध्वीश्री प्रेरणाश्रीजी एवं साध्वीश्री मृदुयशाजी ने जैन जीवनशैली गीत का संगान किया।
साध्वीश्री प्रियंवदाजी ने कहा कि जैन श्रावक की पहचान उसके आचार, विचार, व्यवहार एवं संस्कार से होती है। भगवान महावीर ने बारह व्रतों का विधान किया है। यथाशक्ति व्यक्ति को कुछ न कुछ त्याग एवं संकल्प करने चाहिए। जैन श्रावक को चिंतन हमेशा सकारात्मक रखना चाहिए।
साध्वीश्री विद्यावतीजी ने कहा कि जैन श्रावक के घर में जैन संस्कृति के प्रतीक रहने चाहिए। व्यवहार में जय जिनेन्द्र शब्द का प्रयोग करना जैनत्व का परिचायक है। आहार शुद्धि एवं व्यसन मुक्ति का विशेष ध्यान रखना चाहिए। एक व्यक्ति का नशा परिवार की दुर्दशा कर देता है। अतः आचरण भी जैनत्व के अनुरूप रहे। आभार ज्ञापन तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री नीरव जैन ने किया।
इस कार्यक्रम में तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष कुसुम कोठारी, चांदरतनजी दुगड, भगवतीलालजी धाकड़, तेरापंथी सभा कांदिवली अध्यक्ष ज्ञानमलजी भंडारी, मालाड़ तेरापंथी सभा के मंत्री सुरेशजी धोका, सहमंत्री मुकेशजी कोठारी, राजेन्द्रजी मुथा आदि की विशेष उपस्थिति रही। इनके अलावा भायंदर, दादर, कांदिवली, अंधेरी, दहीसर आदि क्षेत्रों से भी श्रावकों ने कार्यशाला से ज्ञान प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. साध्वीश्री ऋद्धियशाजी ने किया।
