शतावधानी मुनिश्री संजय कुमार जी, मुनिश्री प्रसन्न कुमार जी, मुनिश्री प्रकाश कुमार जी, मुनिश्री धैय कुमार जी, मुनिश्री निकुंजकुमार जी, मुनिश्री मार्दव कुमार एवं नव दीक्षित मुनिश्री कैवल्य कुमार जी सप्त ऋषि संत महात्माओं का आध्यात्मिक मिलन हुआ। राजनगर एवं कांकरोली के गणमान्यजनों की उपस्थिति को संबोधित करते हुए मुनिश्री संजय कुमार जी ने कहा कि आध्यात्मिक जगत में सबसे बड़ी खोज संत गुरु की खोज होती है। उसके बाद शिष्य समर्पण मन सा, वाचा, कर्मणा होता है तो ही शिष्य के कल्याण का मार्ग गुरु होता है। तेरापंथ धर्मसंघ में शिष्य का गुरु के प्रति समर्पण परम्परा का महत्व बड़ा होता है। मन की लगाम भी गुरु के हाथ में थमा देते हैं। तभी शिष्य गुरु के संरक्षण में सुर सित होता है।
कच्छ गुजरात में दीक्षित, गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी ने केवल मुनि उम्र (16) वर्ष को आदेश दिया। जाओ मेवाड राजनगर में मुनि प्रसन्न कुमार जी के पास ध्यान, ज्ञान सेवाएं, संस्कार निमणि वहां करना। इस लक्ष्य से पैदल 19.5.2025 को पहुंचे। इस भयंकर गर्मी में भी गुरु आज्ञा शिरोधार्य कर प्रथम बार मेवाड़ की धरती पर आना हुआ। गुरु समर्पण से ही संघ व्यवस्था संभव होती है। मुनिश्री प्रसन्न कुमार जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ में सेवा सुश्रुषा का बड़ा महत्व है। दीक्षित होने वाला जीवन भर संघ में सेवा देते है। उसके बाद वह शारीरिक असक्षमता होते ही उसकी सेवा परिचर्या में सक्षम मुनि की नियुक्ति गुरुदेव कर देते हैं। यह निश्चितता तेरापंथ में होने से बीमार-अवस्थापक बूजुर्ग संत का अंतिम जीवन शांति चित्त समाधि से बीतता है। परम समाधि में परलोक जाता है। आज के युग में परस्पर के सहयोग की भावना का विकास होना चाहिए। ऐसे सस्कारों का निर्माण जरूरी है।
इस अवसर पर मुनिश्री प्रकाश कुमार जी, मुनिश्री निकुंज कुमार जी, मुनिश्री केवल्य कुमार जी एवं भिक्षु बोधि स्थल राजनगर के अध्यक्ष हर्ष लाल जी नवलखा एवं मंत्री सागरमल जी कावड़िया ने भी अपने विचार व्यक्त किए। पूर्व अध्यक्ष ख्यालीलाल जी चपलोत, कांकरोली सभा अध्यक्ष लाभचंद जी बोहरा मंत्री धनेन्द्र जी मेहता, पडासली सभा अध्यक्ष अनिल जी बड़ाला आदि उपस्थित रहे।
