आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी में तीन दिवसीय शिविर का आयोजन हुआ। इस अवसर पर मुनिश्री धर्मेशकुमारजी ने शिविरार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आंतरिक सम्पदा को पुष्ट करने का साधन है-प्रेक्षाध्यान अध्यात्म और संयम का मार्ग गन्तव्य की ओर बढ़ाता है। सूर्य की किरणों को एक स्थान पर केन्द्रित कर अग्नि पैदा की जा सकती है। वैसे ही ध्यान, साधना के प्रयोगों से लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है बशर्ते मार्गदर्शन और अभ्यास की निरंतरता हो।
संस्थान के व्यवस्थापक महावीर सिंह ने शिविरार्थियों को सम्बोधित करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि सकारात्मक सोच एवं अनासक्त चेतना का जागरण ध्यान के प्रयोगों से ही संभव है। जब व्यक्ति जीवन में तामसिक वृतियों पर नियंत्रण होता है तभी ध्यान की फलश्रुति संभव है। ध्यान साधना करने की कोई उम्र विशेष नहीं होती जब भी व्यक्ति के मन में जिज्ञासा भाव जागृत होता है तभी उसे ध्यान, साधना में लग जाना चाहिए। ध्यान के साथ क्या, क्यों, कब, कहां, कैसे, किसे, कौन कर सकता है ऐसी जिज्ञासा ही व्यक्ति को विकास मार्ग पर ले जाने वाली होती है।
कार्यक्रम में ध्यान साधिका मीना सुभद्रा, साधक-साधिकाओं को उद्बोधित किया। कार्यक्रम का संचालन गौरव जैन ने किया। इस शिविर में प्रतिदिन ध्यान के विभिन्न एवं विशेष प्रयोग एवं प्रशिक्षण दिया जाता है। विशेष रूप से बसंत कुमार, कल्याणसिंह, श्यामसुंदर, भेराराम, अरविन्द आदि उपस्थित रहे।
