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आचार्य की आचार संपदा सशक्त, समृद्ध व रहे पुष्ट : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष के छहदिवसीय कार्यक्रम का तीसरा दिन

साधु, साध्वियों व समणियों ने विभिन्न विधाओं से गुरुचरणों में अर्पित की भावांजलि

19.05.2024, रविवार, जालना (महाराष्ट्र) :

महाराष्ट्र के शहर जालना में इन दिनों एक नए आध्यात्मिक वातावरण छाया हुआ है। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के दीक्षा कल्याण महोत्सव समापन समारोह के अंतर्गत छह दिवसीय कार्यक्रमों में नित नवीन कार्यक्रमों से श्रद्धालु वर्ग लाभान्वित हो रहे है और अपने आराध्य की अभिवंदना में जुड़ रहे है। कल्याण महोत्सव के संदर्भ में आयोजित कार्यक्रम के तृतीय दिन भी अनेक श्रद्धमय प्रस्तुतियां हुई। जिनमें साधु, साध्वियों, श्रावक समाज ने वक्तव्य, गीत, काव्य पाठ द्वारा अपने गुरू की वर्धापना की। आचार्यश्री के प्रवास से नगर में आध्यात्मिक उत्सव सा माहौल है। सुबह से शाम तपोधाम का परिसर श्रद्धालुओं से पटा हुआ नजर आ रहा है वहीं देश भर से भी श्रावक श्राविकाओं का आना जाना जारी है।

मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उद्बोधन प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा – आचार्य परम्परा में एक के बाद एक आचार्य होते है, तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्यों का एक दशक अतीत बन गया व दुसरे दशक का पहला चरण चल रहा है। नमस्कार महामंत्र में बीच का पद आचार्य का होता है। पांच पदों में मानों ऊपर वालों का आशीर्वाद आचार्य को है व शेष दो की सेवा एवं शुभकमाना। हमारे धर्मसंघ में आचार्य का सर्वोच्च स्थान है। गुरु द्वारा आचार्य पद का दिया जाना तेरापंथ में सामान्य बात है। आचार्य के निर्देशन में साधु-साध्वियां व श्रावक-श्राविकाओं का समुदाय होता है। आचार्य की आचार संपदा जितनी सशक्त, समृद्ध व पुष्ट रहे यह मुख्य बात होती है। ये सम्पदाएँ सबकी एक समान हो यह जरूरी नहीं, पर इनकी पुष्टता व समृद्धि का प्रयास होना चाहिए।

गुरुदेव ने आगे कहा कि पांच महाव्रत, तीन समितियों व तीन गुप्तियों को लेकर आचार्य छत्तीस गुणों के धारक होते हैं। ये पुष्ट बनने क मतलब उनकी आचार संपदा अच्छी है। बाकी तो वे भी छद्मस्त है, पर अपने आचार के प्रति वे सदा जागरूक रहें। मोक्ष की दृष्टि से आचार-संपदा का का सर्वाधिक महत्व होता है। वर्णन आता है कि आचार संपदा का अच्छा पालन करने वाले आचार्य का तीन से पांच भव में मोक्ष जाना निश्चित है। गायनकला, ज्ञान व प्रवचन कला मोक्ष के अवरोधक तत्व नहीं, यदि आचार पुष्ट हो तो मोक्ष जाना निश्चित है। वाणीसंपदा, श्रुतसंपदा, शरीर संपदा, शिष्य-संपदा सब कुछ का योग आचार्य की आचार संपदा के साथ हो तो सोने में सुहागा बन सकता है।

अभ्यर्थना के क्रम में मुनि पुलकित कुमार जी, मुनि सुधांशु कुमार जी, मुनि अनुशासन कुमार जी, मुनि गौरव कुमार जी, मुनि प्रिंस कुमार जी, मुनि ध्रुव कुमार जी, मुनि सत्य कुमारजी, मुनि लक्ष्यकुमारजी, मुनि अक्षयप्रकाशजी ने भावाभिव्यक्ति दी। समणी निर्मलप्रज्ञाजी, समणी अक्षयप्रज्ञाजी, साध्वी आरोग्यश्रीजी, साध्वी ऋद्धिप्रभाजी, साध्वी समताप्रभाजी, साध्वी उज्ज्वलप्रभाजी, साध्वी विशालयशाजी, साध्वी कमनीयप्रभाजी व साध्वी चेतनप्रभाजी, साध्वी रुचिरप्रभाजी, साध्वी सिद्धार्थप्रभाजी, साध्वी श्रुतयशाजी, साध्वी शुभ्रयशाजी, साध्वी मैत्रीयशाजी, साध्वी प्रवीणप्रभाजी आदि साध्वियों ने अपनी प्रस्तुति दी। तदुपरान्त साध्वीवृंद व समणीवृंद ने समूह गीत का संगान किया।

जालना की बहन– बेटियां एवं महिला मंडल की सदस्याओं ने सामूहिक गीतों की प्रस्तुति दी।

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