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जालना की धरा पर नव्य रूप में समायोजित हुआ तेरापंथ अनुशास्ता का 63वां जन्मोत्सव समारोह

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– चतुर्विध धर्मसंघ ने विभिन्न प्रकार से अपने आराध्य को किया वर्धापित
– प्रकृति ने अपनी नरमी से दी महातपस्वी को मंगल बधाई, प्रायः पूरे दिन छाए रहे बादल
– सम्पूर्ण भारतवर्ष से हजारों श्रद्धालु पहुंचे पूज्यचरण में
– जन्म से अजन्म की दिशा में आगे बढ़ने का हो प्रयास : महातपस्वी महाश्रमण
-7 बातें ज्ञान की पुस्तक पूज्य सन्निधि में जैविभा के द्वारा लोकार्पित
17.05.2024, शुक्रवार, जालना (महाराष्ट्र) :
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, मानवता के मसीहा, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का 63वां जन्मोत्सव समारोह जालना की धरती पर नव्य-भव्य रूप में समायोजित हुआ। सूर्योदय के पूर्व से ही महासूर्य की अभ्यर्थना, अभिवंदना और वर्धापना का जो क्रम प्रारम्भ हुआ, वह दोपहर पूरे कार्यक्रम में चलता रहा। ऐसे महामानव के जन्मोत्सव समारोह को बनाने को मानों श्रद्धा का ज्वार उमड़ आया था। विशाल संयम समवसरण परिसर भी मानों बौना-सा बना हुआ था।
महाराष्ट्र की धरा को पावन बनाने के साथ एक वर्ष में आयोजित होने वाले समस्त संघीय कार्यक्रम समायोजन की अनुमति प्रदान कर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महाराष्ट्र का मान बढ़ा दिया। इतना ही नहीं, लम्बे-लम्बे विहार कर एक दिवस पूर्व ही अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री ने जालना में प्रवेश कर जालनावासियों को निहाल कर दिया। जालना की धरा पर शांतिदूत आचार्यश्री का जन्मोत्सव, पट्टोत्सव व दीक्षा कल्याण दिवस महोत्सव वर्ष का समापन समारोह भी निर्धारित है।
शुक्रवार को प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उपस्थित हो गई। आचार्यश्री के संसारपक्षीय पारिवारिकजनों ने थाली आदि बजाकर जन्मोत्सव की बधाई दी तो उपस्थित श्रद्धालुओं की हर्षध्वनि के माध्यम से अपने आराध्य की अभ्यर्थना की। सूर्योदय के तुरन्त बाद साध्वीवृंद व समणीवृंद भी उपस्थित होकर अपनी भावनाओं को विभिन्न माध्यमों से अभिव्यक्ति दी।
तदुपरान्त श्री गुरु गणेश तपोधाम परिसर में बने भव्य संयम समवसरण में आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग नौ बजे पधारे तो पूरा वातावरण जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंचासीन होने से पूर्व ही विशाल प्रवचन पण्डाल श्रद्धालुओं की विराट उपस्थिति से बौना-सा नजर आने लगा। शांतिदूत आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ 63वें जन्मोत्सव समारोह का शुभारम्भ हुआ।
बालक मनन बागरेचा ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-जालना ने जन्मोत्सव के संदर्भ में गीत का संगान किया। जालना के जय माता दी ग्रुप ने अपनी प्रस्तुति दी। सैक्ष साध्वी कक्षा से संबंधित साध्वियों ने गीत का संगान किया। साध्वी अनुप्रेक्षाश्रीजी, साध्वी चारित्रयशाजी, साध्वी सुमतिप्रभाजी, मुनि देवकुमारजी, मुनि रजनीशकुमारजी, मुनि वर्धमानकुमारजी, मुनि मृदुकुमारजी, मुनि खुशकुमारजी, मुनि जितेन्द्रकुमारजी, मुनि नयकुमारजी, मुनि केशीकुमारजी, मुनि चिन्मयकुमारजी, मुनि सिद्धकुमारजी, मुनि ध्यानमूर्तिजी, मुनि आलोककुमारजी व साध्वी मुदितयशाजी ने आचार्यश्री की अभ्यर्थना में अपने विचार प्रस्तुत किए।
मुनि हिमकुमारजी, मुनि आदित्यकुमारजी, मुनि पार्श्वकुमारजी, मुनि अनेकांतकुमारजी व मुनि नम्रकुमारजी ने अपने-अपने गीतों का संगान किया। समणी प्रणवप्रज्ञाजी ने गीत का संगान किया। समणी सौम्यप्रज्ञाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने आचार्यश्री की वर्धापना में अपने उद्गार व्यक्त किए।
आचार्यश्री के संसारपक्षीय ज्येष्ठ भ्राता श्री सुजानमलजी दूगड़, अनुज श्री श्रीचंद दूगड़ ने भी आचार्यश्री को वर्धापित किया। तदुपरान्त संसारपक्षीय दूगड़ परिवार ने गीत का संगान किया। दूगड़ परिवार से संबंधित प्रेक्षा व मिहिर तथा आद्या बच्छावत ने भी अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी।
तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विशाल जनमेदिनी व चतुर्विध धर्मसंघ को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में जन्म होता रहता है। आदमी वर्तमान के जन्मदिन को मनाता है, किन्तु अपनी आत्मा पर ध्यान दें तो अब तक प्रायः समस्त आत्माओं ने अनंत-अनंत बार जन्म ले लिया है। अनंत जीव योनियों के बाद आदमी मानव रूप में जन्म पाता है। यह मानव जन्म सबसे सर्वोच्च होता है। इस मानव जीवन में अध्यात्म की उत्कृष्ट साधना के द्वारा परम पद मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। आदमी अपने इस मानव जीवन में संयम की साधना कर ले, सिद्धि की प्राप्ति कर ले तो जीवन धन्य हो जाता है। जो साधना इस मानव जीवन में हो जाती है, वह अन्य किसी जीवन में नहीं प्राप्त हो सकता। इस जीवन का उपयोग क्या करते हैं, वह खास बात होती है। जो व्यक्ति अध्यात्म की साधना, सम्यक् ज्ञान व सम्यक् दर्शन की उपलब्धि प्राप्त कर लेता है तो मानव जीवन सार्थक व सफल हो जाता है। अध्यात्म की साधना का अवसर मिलना विशेष बात होती है।
निमित्तों का भी अपना महत्त्व होता है। मेरी मां नेमाजी ने बचपन में ही मेरे ऊपर बड़ा उपकार किया कि मुझे साधु-संतों के सम्पर्क में जोड़ दिया। वह सम्पर्क मानों इतना घनिष्ठ हुआ, साधु-साध्वियों से ऐसी प्रेरणा मिली कि महान पथ पर चलने का अवसर प्राप्त हो गया। जीवन में माता व अन्यों से ऐसे संस्कार मिल जाते हैं कि वह कल्याण के पथ पर अग्रसर हो जाता है। मेरे पिता श्री झूमरमलजी को जहां तक मैंने देखा कि वे सूर्य को नमस्कार करते व कुछ माला जपते। मुझे पिता का ज्यादा लम्बा साया नहीं मिला, सात वर्ष की अवस्था में उनका साया उठ गया। मुझे अपने ज्येष्ठ भ्राता के अनुशासन में रहने का अवसर मिला। परिवार में अनुशासन का महत्त्व होता है तो उसका अच्छा प्रभाव देखने को मिल सकता है।
जीवन में धर्म और अध्यात्म का रास्ता मिल गया। इस मानव जीवन में कुछ हो सके, वह खास बात होती है। बाद में गुरुओं का साया व संरक्षण मिला। गुरुदेव तुलसी मुझसे अड़चास वर्ष बड़े थे। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी उम्र में बयालीस वर्ष बड़े थे। उनके चरणों में रहने का अवसर मिला। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी के आसपास भी थोड़ा रहने का अवसर मिला। वे भी मेरे से इक्कीस वर्ष बड़ी थीं।
मानव जीवन जो हमें प्राप्त हुआ है, उसमें कुछ अच्छा करने का प्रयास होना चाहिए। जन्मदिवस आता है, यह प्रमोद भाव, प्रोटोकॉल, शिष्टाचार आदि कुछ भी कह लें, इसका आयोजन आदि होता है। इसमें कितनों को बोलने का अवसर मिल जाता है। हमारा चतुर्विध धर्मसंघ है, कितनी-कितनी संस्थाएं हैं। संस्थाओं द्वारा कार्य करने का प्रयास होता है। छह दिनों के कार्यक्रम का प्रथम दिन है। जीवन में आदमी अच्छा पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। भाग भरोसे नहीं, निरंतर कुछ करने का प्रयास होना चाहिए। अच्छी राह मिले, भीतर में चाह और भीतर में उत्साह रहे तो आदमी अपने जीवन में कुछ प्राप्त भी कर सकता है। जन्म से अजन्म की ओर आगे बढ़ने का प्रयास करें, यह हम सभी के लिए श्रेयस्कर हो सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित ‘7 बातें ज्ञान की’ पुस्तक पूज्यचरणों में लोकार्पित की गई। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद भी प्रदान किया। दैनिक पत्रिका नायक के विशेष अंक का भी विमोचन आचार्यश्री के समक्ष श्री संजय देशमुख ने किया।

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