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बुद्धि से हो सकता है समस्या के कारण का निवारण : आचार्यश्री महाश्रमण

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– शांतिदूत ने बुद्धि, ज्ञान, साधना आदि में विकास करने की दी प्रेरणा

– भुज के तेरापंथ भवन में आचार्यश्री ने किया रात्रिकालीन प्रवास

13 फरवरी, 2025, गुरुवार, भुज, कच्छ (गुजरात)।
भुज की धरा पर विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को मंगल प्रवचन के उपरांत मंछा केशव भवन में पधारे और उसके उपरांत रात्रिकालीन प्रवास हेतु भुज के तेरापंथ भवन में विराजमान हुए। भुजवासी अपने आराध्य की इस कृपा को प्राप्त कर अत्यंत ही आनंद की अनुभूति कर रहे थे। गुरुवार को प्रातः शहर के श्रद्धालुओं पर आशीष वृष्टि करते हुए आचार्यश्री पुनः प्रतिदिन वाले प्रवास स्थल में निर्धारित समय पर जनता को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने के लिए ‘कच्छी पूज समवसरण’ में पधारे और जनता को पावन पाथेय प्रदान किया। प्रातः विचरण के दौरान अनेकानेक घरों में गुरुदेव ने पगलिया कर मंगल पाठ भी प्रदान किया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपनी बुद्धि का भी उपयोग करता है। बुद्धि का विकसित होना भी एक उपलब्धि होती है। बुद्धि का संबंध ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से है। ज्ञानावरणीय कर्म का सघन क्षयोपशम होता है तो बुद्धि कुशाग्र हो सकती है। बुद्धि के द्वारा आदमी हित-अहित के विषय में विवेचन कर सकता है। इसलिए सभी में बुद्धि एक समान नहीं होती। ज्ञान का गहराई तक पहुंच जाना बहुत बड़ी बात हो सकती है। शास्त्र में कहा गया कि जो धीर पुरुष होता है वह समस्या के अग्र और मूल दोनों भागों को देख लेता है और उसका विवेचन कर किसी समस्या को जड़ से समाप्त कर सकता है।
जैसे कोई बीमार हो गया तो डॉक्टर्स उसकी कई तरह की जांच कराते हैं। जब डॉक्टर कारण को पकड़ लेता है तो फिर उसकी चिकित्सा की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है और उससे कोई समस्या समाप्त भी हो जाती है। बीमारी एक कार्य है तो पहले उसका कारण जानना और कारण की जानकारी होने के बाद उसका निवारण भी अच्छा हो सकता है। आदमी अपनी बुद्धि से मूल कारण तक पहुंच सकता है।
साधु के साथ बुद्धि और उसके आधार पर साधना होती है तो अपनी साधना का निदान करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधना करें तो उसका बल पाने, कोई स्थान पाने आदि की कामना से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि थोड़े लाभ के लिए ज्यादा को खो देना अच्छी बात नहीं होती। भौतिक सुख के लिए आध्यात्मिक सुख के त्याग से बचने का प्रयास करना चाहिए। समणियां और मुमुक्षु बोधार्थी बाइयों को गुरुकुलवास में रहने का अवसर मिल गया। अब जाने की बात भी हो सकती है तो समणियां और बोधार्थी बहनें भी अपनी साधना आदि पर ध्यान देने का प्रयास करती रहें।
मंगल प्रवचन के उपरांत भुज के उपासक श्री प्रभुभाई मेहता, श्री जीतूभाई भाभेरा व बालक ध्रुवेश भाभेरा ने अपनी बाल सुलभ प्रस्तुति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल, भुज ने अपनी प्रस्तुति दी।

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