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देव, गुरु और धर्म के प्रति बनी रहे शुद्ध भक्ति : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– भारत के मैनचेस्टर को पावन बनाने को गतिमान हुए ज्योतिचरण

– करीब 12 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे शायोना इंटरनेशनल स्कूल

– अहमदाबादवासियों ने दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति

22 जून, 2025, रविवार, अहमदाबाद (गुजरात)।
गुजरात राज्य के लगातार दूसरे चतुर्मास के लिए प्रवेश से पूर्व अहमदाबाद नगरवासियों की कामनाओं को तृप्ति प्रदान व जन मानस के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ शनिवार को प्रविष्ट हुए।
भारत के मैनचेस्टर के रूप में सुविख्यात साबरमती नदी के तट पर बसा हुआ यह शहर अब आध्यात्मिकता से भावित होगा। रविवार को प्रातःकाल सूर्याेदय के पश्चात आचार्यश्री स्व बंगलो से गतिमान हुए तो सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य के सुपावन चरणों का अनुगमन करते हुए गतिमान हुए। महाश्रमणमय बने इस शहर के प्रत्येक मार्ग से श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शनार्थ पहुंच रहे थे। जन-जन को मंगल आशीष प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अहमदाबाद शहर के घटलोडिया में स्थित शायोना इंटरनेशनल स्कूल में पधारे।
स्कूल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में समर्पण और भक्ति का महत्त्व है। आदमी जिसको अपना आराध्य मान लेता है, अपने आराध्य देव, गुरु अथवा धर्म के रूप में स्वीकार कर लेता है, उसके प्रति भक्ति और समर्पण का पूर्ण भाव होता है, वहां लेकिन, किन्तु अथवा शर्त जैसी कोई बात नहीं रह जाती। समर्पण और भक्ति किसी व्यक्ति के प्रति भी हो सकती है, सिद्धांत के प्रति भी हो सकती है और किसी नियम के प्रति भी हो सकती है। संघ के प्रति भी भक्ति का भाव हो सकता है। अपने धर्मसंघ के प्रति भी भक्ति और समर्पण का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। थोड़ी कठिनाई आने पर भी समर्पण का भाव बना रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए।
तीर्थंकर, अर्हत, आचार्य, साधुओं के प्रति ही भक्ति का भाव होना चाहिए। हर किसी के सामने मस्तक झुके अथवा न झुके, किन्तु तीर्थंकरों के समक्ष, गुरु के सामने मस्तक प्रणत होता है, वह भक्ति की भावना होती है। देव भी उसे नमस्कार करते हैं, जिसका मन सदा धर्म में रत रहता है। नमस्कार महामंत्र के पांच पदों में अर्हतों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों को व संसार के सभी साधुओं को नमस्कार किया गया है।
शुद्ध साधुओं को नमस्कार की बात बताई गई है। इस प्रकार नवकार एक भक्ति का पाठ है। भक्ति का ग्राफ तब उठता है, जब अहंकार का भाव नीचे की ओर गिर जाता है। अहंकार के रहते भक्ति की भावना को स्थान नहीं मिल पाता। मन में ऐसा संकल्प होना चाहिए हमारी धर्म के प्रति आस्था बनी रहे। यह जीवन छूट जाए, लेकिन धर्म के प्रति समर्पण का भाव बना रहे। देव, गुरु और धर्म के प्रति शुद्ध भक्ति की भावना बनी रहे, यह काम्य है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत पश्चिम सभा के अध्यक्ष श्री सुरेश दक, शायोना परिवार की ओर से श्री सुरेशभाई पटेल, श्री गौतम बाफना तथा श्री जयंतीभाई भटेवरा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नवरंगपुरा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री प्रताप दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए एक बैनर का अनावरण किया। तेरापंथ कन्या मण्डल ने गीत का संगान किया।

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