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जीवन में कर्त्तव्य का बोध होना आवश्यक : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– अहमदाबाद महानगर प्रवेश से एक दिन पूर्व लिम्बडिया पहुंचे राष्ट्रीय संत

– करीब 12 कि.मी. का विहार कर पिनाकल पब्लिक स्कूल में पधारे शांतिदूत

20 जून, 2025, शुक्रवार, लिम्बडिया, अहमदाबाद (गुजरात)।
गुजरात के डायमण्ड नगरी सूरत में वर्ष 2024 का चतुर्मास सुसम्पन्न करने के उपरांत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लगभग आठ महिनों तक गुजरात के ही अनेक नगरों, कस्बों व गांवों में यात्रा प्रवास कर ऐसी आध्यात्मिक आलोक प्रसारित की है, जिससे मानों पूरा गुजरात आलोकित हो चुका है। अब वे महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ वर्ष 2025 का चतुर्मास अहमदाबाद के कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में करेंगे। इसके लिए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अहमदाबाद नगर के काफी सन्निकट पधार गए हैं। शनिवार को महातपस्वी आचार्यश्री अहमदाबाद नगर में मंगल प्रवेश करेंगे और लगभग पन्द्रह दिनों तक अहमदाबाद नगर में भ्रमण व विहार कर अहमदाबादवासियों को आध्यात्मिक तृप्ति प्रदान करेंगे। इसके उपरांत आचार्यश्री 6 जुलाई को प्रेक्षा विश्व भारती में चातुर्मासिक महामंगल प्रवेश करेंगे। इस बात को लेकर अहमदाबादवासियों का उत्साह अपने चरम पर है।
शुक्रवार को प्रातः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मोटा चिलोड़ा से मंगल प्रस्थान किया। आज भी आसमान बादलों से प्रायः आच्छादित रहा। बहती बयार मौसम को और सुहावना बना रही थी। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर लिम्बडिया में स्थित पिनाकल पब्लिक स्कूल में पधारे। स्कूल के बच्चों व स्कूल से जुड़े लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया।
स्कूल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में कर्त्तव्य बोध और कर्त्तव्य पालन का बहुत महत्त्व होता है। जो लोग अपने कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य को नहीं जानते, उनका कभी ऐसा अनिष्ट हो सकता है, जिसकी वे कभी कल्पना भी नहीं किए होंगे। साधु के कर्त्तव्य के विषय में बताया गया है कि साधु का पहला कर्त्तव्य होता है कि वह अपने साधुत्व की रक्षा करे। साधु बहुत बड़ा वक्ता न भी हो, अंग्रेजी भाषा का जानकार न भी हो, साधु संस्कृत भाषा का प्रकाण्ड पंडित न भी हो, किन्तु एक साधु में साधुता अवश्य होनी चाहिए। भाषा की जानकारी न हो, वक्ता न हो चलेगा, लेकिन साधुत्व का पालन साधु के लिए अत्यावश्यक होता है। इसके अलावा अपने बड़े-बुर्जुगों की सेवा करना, उपासना करना, प्रवचन आदि कार्य करना भी एक साधु का कार्य होता है। अन्य कार्यों को करने की आवश्यकता भी हो सकती है। इन सबसे प्रथम ड्यूटी है कि साधु को अपने साधुत्व की रक्षा करनी चाहिए।
सांसारिक जीवन में भी सभी का अपना-अपना कर्त्तव्य होता है। शिक्षक, डॉक्टर, माता-पिता, पुत्र-पुत्री, चिकित्सक आदि-आदि सबके अपने-अपने कर्त्तव्य होते हैं। कोई अपने कर्त्तव्य से भी ज्यादा अच्छा करे तो वह और अच्छी बात हो सकती है, लेकिन आदमी को अपने कर्त्तव्यों का ज्ञान होना परम आवश्यक है। किसी की सहायता करना व्यक्ति की संवेदनशीलता हो सकती है। जो दुःखी हैं, जो आहत हैं, उनको राहत दिलाने का कर्त्तव्य भी बहुत बड़ी बात होती है। समाज में सेवासापेक्षों की सेवा, सहयोग का भाव होना और सहयोग करना भी एक प्रकार से कर्त्तव्य की बात हो सकती है।
संतों को ही देख लिया जाए तो संतों की सेवा तो संत ही करते हैं तो कोई संत बीमार हो जाए, सेवा की अपेक्षा हो जाए तो उसकी सेवा करने में संतों को जुट जाना चाहिए। सेवा को परम गहन धन कहा गया है। कई बार ध्यान करना आसान हो सकता है, लेकिन कोई सेवा करने वाला हो जाए, तो बहुत बड़ी बात हो जाती है। माता-पिता का अपने संतान के प्रति भी कर्त्तव्य होता है। बच्चे में अच्छे संस्कार, शिक्षा, धार्मिक चेतना के विकास का भी प्रयास हो। संतान का अपने माता-पिता के प्रति भी कर्त्तव्य होता है।
परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने जनोद्धार करने के लिए कितनी लम्बी-लम्बी यात्राएं कीं और अणुव्रत का प्रसार किया। प्रवचन दिया, लोगों को सन्मार्ग दिखाए और कितनी यात्राएं कीं। यह उनका कर्त्तव्य था। इसलिए आदमी को अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। पहरेदार का कार्य होता है, पहरेदारी करना। यदि कोई सोए तो भला अपने कर्त्तव्य का कितना पालन करता है। जिसकी जो ड्यूटी अथवा कर्त्तव्य है, उसके प्रति आदमी को जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपनी ड्यूटी के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। धर्म-अधर्म की दृष्टि से भी कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य को विवेचित किया जा सकता है। आदमी को अपने कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक रहना हितकर हो सकता है।
स्कूल की एकेडमिक हेड श्रीमती पिंकी लुला ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

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