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अक्रोध, अलोभ व अभय से सहजानंद की प्राप्ति संभव : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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– गांधीनगर जिले अहमदाबाद जिले में महातपस्वी महाश्रमण का मंगल प्रवेश

– 12 कि.मी. का विहार कर मोटा चीलोड़ा में स्थित सहजानंद ऑफ अचीवर में मंगल पदार्पण

– आचार्यश्री ने सहजानंद की प्राप्ति में बाधक तत्त्वों को किया व्याख्यायित

19 जून, 2025, गुरुवार, मोटा चीलोड़ा, अहमदाबाद (गुजरात)।
गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में वर्ष 2025 का चतुर्मास करने के लिए अहमदाबाद की ओर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को विहार के दौरान अहमदाबाद जिले की सीमा में प्रवेश किया। गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गांधीनगर जिले में स्थित चंद्राला गांव से मंगल प्रस्थान किया। भारत के कई राज्यों में सक्रिय हो चुके मानसून का असर गुजरात के इस क्षेत्र में भी व्यापक रूप में दिखाई दे रहा था। गत दो दिनों से हुई वर्षा के कारण खेतों में जहां पानी दिखाई दे रहा था तो वहीं आसमान में अभी भी काले बादल डेरा डाले हुए थे। बरसात के कारण मार्ग में कई स्थानों पर पानी भरे होने के कारण आवागमन में थोड़ी कठिनाई भी हो रही थी, किन्तु प्राकृतिक अनुकूलताओं व प्रतिकूलताओं से परे अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए निरंतर गतिमान थे। हालांकि प्रचण्ड गर्मी के बाद हुई बरसात ने सभी को एक बार राहत प्रदान कर दी है। बरसात के कारण पूरा वातावरण शीतल बना हुआ था। इस शीतल मौसम में लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अहमदाबाद जिले की सीमा में स्थित मोटा चीलोड़ा गांव में स्थित सहजानंद ऑफ अचीवर में पधारे। उपस्थित श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।
प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के मन में शांति की कामना रहती है। कोई भी प्राणी शांति में रहना चाहता है, सुखमय जीवन जीना चाहता है। सुख की चाह होने पर भी कई बार ऐसी राह नहीं मिलती, जिससे परम शांति की प्राप्ति हो जाए। सुख पाने की कामना से आदमी प्रयास करता भी है। एक बार उसे सुख मिल भी जाए तो भी वह फिर दुःख की ओर गतिमान हो जाता है। दो प्रकार के सुख बताए गए हैं-एक है सहज सुख और एक है कृत्रिम सुख। सहज सुख जो परिस्थिति पर निर्भर नहीं होता और कृत्रिम सुख परिस्थिति पर निर्भर होता है। सहजानंद किसी का नाम भी हो सकता है और हम सहजानंद की व्याख्या करें तो सहज और आनंद की प्राप्ति होती है। वास्तविक आनंद को सहजानंद भी कहते हैं। प्रश्न हो सकता है कि यह सहज आनंद की प्राप्ति कैसे हो?
आदमी जितना सहज, सरल, निष्कपट रहेगा, आदमी आनंद में रह सकता है। सहजता, सरलता ही शांति का वास्तविक मार्ग है। शांति के कई बाधक तत्त्व होते हैं, उनमें एक है-क्रोध। आदमी को छोटी-छोटी बातों में गुस्सा आ जाता है। सहजानंद प्राप्त करने के लिए आदमी को गुस्से को कमजोर रखने का प्रयास करना चाहिए अथवा उससे बचने का प्रयास करना चाहिए। गुस्सा मनुष्यों का शत्रु होता है। कैसी भी स्थिति आ जाए, स्वयं को समता में रखने का प्रयास हो तो कर्म की निर्जरा भी हो सकती है। निंदा करने पर भी आदमी यह चिंता करे कि निंदा करने वाले की बात में कितनी सच्चाई है। यदि वास्तव में कोई कमी है तो उसे दूर किया जा सकता है और यदि वे बातें आधारहीन हैं, तब आदमी निंदा करने वालों के प्रति दया करे कि वह झूठ बोलता है। किसी बात का जवाब भी दिया जा सकता है, लेकिन निंदा का जवाब आदमी को अपने अच्छे कार्यों से देने का प्रयास करना चाहिए।
दूसरी बात बताई गई कि आदमी को ज्यादा लोभ, लालच, लालसा, कामना नहीं करना चाहिए। कामना ज्यादा होती है और वह नहीं मिलता है तो आदमी के मन में दुःख हो सकता है। आदमी को अच्छा कार्य करने का प्रयास करना चाहिए, मिले तो ठीक अथवा कोई बात नहीं, अपना अच्छा कार्य करते रहना चाहिए। आदमी को लोभ के भाव से बचने का प्रयास करना चाहिए। किसी कार्य में नाम की भावना न होकर ज्यादा से ज्यादा निष्काम भावना रखने का प्रयास हो। अति लोभ से बचने का प्रयास करना चाहिए और संतोष रखने का प्रयास हो। लोभ नहीं होने से सहजानंद की प्राप्ति हो सकती है।
तीसरी बात बताई गई कि भय से भी आनंद में बाधा आती है। आदमी कई बार डरता भी है। बीमारी से डरता है, अपमान से डरता है और तो मौत का भय तो कितना ज्यादा हो सकता है। इसलिए आदमी को भय से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। निश्चिंतता और निर्भयता होती है तो सहजानंद की प्राप्ति हो सकती है। जिनेश्वर भय को जीतने वाले होते हैं। न डरना ओर न ही किसी दूसरे को डराना। अभय भी एक सहजानंद का उपाय है। आदमी को सहजानंद की प्राप्ति करनी है। अक्रोध, अलोभ और अभय का विकास हो तो सहजानंद की प्राप्ति भी हो सकती है।
आचार्यश्री के स्वागत में श्रीमती मंजू लोढ़ा, श्री मुदित लोढ़ा, श्री मंथन जैन, श्री अशोक सुकलेचा, उत्तर गुजरात तेरापंथ समाज के अध्यक्ष श्री गणपतलाल दुगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मण्डल व स्कूल की छात्रा सोनल व पूजा ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। सहजानंद स्कूल की हीर जैन ने भिक्षु अष्टकम् की प्रस्तुति दी। विद्यालय की प्रिंसिपल श्रीमती अर्चना उपाध्याय ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

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