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धर्म से परिपूरित हो मानव का व्यवहार : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

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– अखण्ड परिव्राजक ने किया 14 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार

– सालैया गांव को पावन करने पधारे आचार्यश्री महाश्रमण

– श्री एम.वी. पटेल हाईस्कूल पूज्यचरणों से बना पावन

6 जून, 2025, शुक्रवार, सालैया, महीसागर (गुजरात)।
मानसून के आगमन से धरती की हरियाली बढ़ने लगी है। वृक्ष ही नहीं, खेतों में खड़ी फसलें भी बारिश के जल से नहाकर आनंदित हो रही हैं। जन-जन के मानस के आतप को हरने व उनके मानस आध्यात्मिक अभिसिंचन से भावित करने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी गुजरात की धरती पर गतिमान हैं।
शुक्रवार को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी उभराण से गतिमान हुए। मानसून की सक्रियता के कारण होने वाली बरसात ने चारों ओर हरियाली को मानों वृद्धिंगत कर दिया है। खेतों में खड़ी बाजरे आदि की लहलहाती फसलें व वृक्षों का चमकीला हरा रंग जन-जन के मानस को आकर्षित कर रहा था। मार्ग में आने वाले गांवों की जनता को मंगल आशीष प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर सालैया गांव में स्थित श्री एम.वी. पटेल हाईस्कूल परिसर में पधारे।
स्कूल परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी का व्यवहार धर्म से परिपूरित होना चाहिए। धर्म से युक्त व्यवहार होता है तो वह व्यवहार पवित्र बन सकता है, निर्मल हो सकता है। व्यवहार में अहिंसा, ईमानदारी, संयम, सरलता है तो व्यवहार निर्मल हो सकता है। आदमी को अपने व्यवहार को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। अपने से बड़ों, गुरुजनों के प्रति आदर, सम्मान का भाव होना चाहिए। यह व्यवहार लौकिक शिष्टाचार ही नहीं, बल्कि धर्म से भी जुड़ा हुआ हो सकता है।
आदमी को सभी प्राणियों के प्रति दया की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। कोई भी प्राणी हो, सभी जीवों के प्रति दया की भावना होनी चाहिए। आदमी को न्यायपूर्ण बर्ताव करना चाहिए। धनार्जन में भी न्याय रखने का प्रयास करना चाहिए। न्याय से कमाया गया पैसा अर्थ होता है और अन्याय से कमाया गया पैसा अर्थाभास होता है। आदमी के भीतर न्याय की वृत्ति होनी चाहिए। गृहस्थ जीवन में पैसा बहुत अधिक हो जाए तो उसे लेकर घमण्ड नहीं होना चाहिए। किसी के पास विशेष ज्ञान हो जाए तो भी ज्ञान के अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। पांडित्य का अच्छा उपयोग होना चाहिए न कि उसका अहंकार करना चाहिए। शरीर में शक्ति हो तो उसका अहंकार नहीं, बल्कि उसका सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके आदमी को तपस्या करते रहने का प्रयास करना चाहिए। किसी को सत्ता में आने का अवसर मिल गया तो उसे उसके माध्यम से सेवा का प्रयास करना चाहिए। सत्ता के अहंकार से भी बचने का प्रयास करना चाहिए।
साधु की एक घड़ी, आधी घड़ी या पाव घड़ी की संगति हो जाए तो कोटि-कोटि अपराध समाप्त हो सकता है। शुद्ध साधु के दर्शन मात्र से भी पाप झड़ते हैं। संतों व सज्जनों की संगति हो जाए तो गृहस्थों का जीवन भी अच्छा हो सकता है। आचार्यश्री के स्वागत में स्कूल के मुख्य ट्रस्टी श्री बालूभाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

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