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इन्द्रियों के लिए ग्राह्य नहीं है आत्मा : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– मेघरज में अध्यात्म की वर्षा करने पधारे अध्यात्म जगत के महामेघ महाश्रमण

– शांतिदूत ने किया लगभग 12 कि.मी. का विहार

– मेघरजवासियों ने आराध्य का किया भावभीना अभिनंदन

– साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने भी मेघराजवासियों को किया उद्बोधित

– मेघरजवासियों ने भी दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति

1 जून, 2025, रविवार, मेघरज, अरवल्ली (गुजरात)।
जन-जन के मानस को पावन बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी धर्मसंघ के महामेघ के रूप में मेघरज में पधारे तो मानों मेघरज भी आचार्यश्री की आध्यात्मिक वर्षा से अभिस्नात हो उठा। मेघरजवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ मेघरज के श्री पी.सी.एन. हाईस्कूल में पधारे।
इससे पूर्व रविवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी शिणावाड से गतिमान हुए। लोगों को आशीष प्रदान करते हुए 12 किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मेघरज में स्थित श्री पी.सी.एन. हाईस्कूल परिसर में पधारे। मेघरजवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया।
स्कूल परिसर में बने ‘महावीर समवसरण’ में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान उपस्थित जनमेदिनी को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा एक ऐसा तत्त्व है, जो इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है। आत्मा का सिद्धांत आध्यात्मिक जगत का प्रमुख सिद्धांत है। अध्यात्म का मूल आधार आत्मा पर ही टिका हुआ है। आत्मा को अमूर्त कहा गया है। आत्मा का कोई रूप नहीं होता। आत्मा को इन्द्रियों के द्वारा नहीं जाना जा सकता है।
दुनिया में जो पदार्थ हैं-मूर्त एवं अमूर्त और दूसरे ढंग से कह सकते हैं-जीव और अजीव। जिसमें वर्ण हो, रूप हो, रस हो, गंध हो, स्पर्श हो वह मूर्त और जिसमें ये सभी नहीं होते वे अमूर्त होते हैं। जो आंखों से दिखाई देते हैं, सभी पुद्गल होते हैं। आत्मा इन्द्रियों के लिए ग्राह्य नहीं है। आत्मा अशोष्य, अहदाह्य, अक्लेद्य है। आत्मा का कभी नाश नहीं होता है। आत्मा को गलाया, भिंगोया, सुखाया या जलाया नहीं जा सकता है। आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है, जब तक उसे मोक्ष नहीं मिल जाता। जिस प्रकार आदमी पुराने कपड़ों को छाड़ता है, आत्मा उसी प्रकार पुराने और जीर्ण-शीर्ण शरीर को छोड़कर नए शरीर में प्रवेश कर जाती है।
राग-द्वेष के संस्कार जब नष्ट हो जाएंगे तो आत्मा परमसुख को प्राप्त कर सकती है। आदमी को अपने जीवन का लक्ष्य परमसुख को प्राप्त करने का बनाने का प्रयास करना चाहिए। मोक्ष ही एक ऐसा स्थान है, जहां एकांत सुख है। मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ना मानव जीवन का लक्ष्य रखने का प्रयास करना चाहिए। आज मेघरज में आना हुआ है। यहां की जनता में अच्छे संस्कार आएं। सभी में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का प्रभाव रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत मेघरजवासियों को साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने भी उद्बोधित किया। अपनी वैराग्यभूमि में अपने आराध्य के आगमन से हर्षित मुनिश्री कोमलकुमारजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। मेघरज तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री लादूलाल माण्डोत, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री निलेश गांधी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय ज्ञानशाला, तेरापंथ युवक परिषद व तेरापंथ महिला मण्डल ने संयुक्त रूप से अपनी प्रस्तुति दी। मुनिश्री कोमलकुमारजी के संसारपक्षीय ज्ञातिजन श्री बाबूलाल दक व श्री निलेश दक ने अपनी अभिव्यक्ति दी। बालिका जैन्सी दक व यशवी कोठारी ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला ने अपनी प्रस्तुति दी।

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