– मोडासा से गतिमान हुए ज्योतिचरण, शिणावाड को किया पावन
– 11 कि.मी. का विहार कर शिणावाड यूथ प्राथमिकशाला में पधारे शांतिदूत
– मुख्यमुनिश्री के 38वें जन्मदिवस पर आचार्यश्री ने प्रदान किया मंगल आशीष
31 मई, 2025, शनिवार, शिणावाड, अरवल्ली (गुजरात)।
गुजरात की पग-पग धरा ज्योतिचरण की ज्योति से आलोकित हो रही है। आर्थिक दृष्टि से समृद्ध भारत का यह राज्य वर्तमान समय में आध्यात्मिक आलोक से जगमगा रहा है। गत वर्ष 2024 से ही गुजरात की सिल्क व डायमण्ड सिटी, सूरत में भव्य चतुर्मास सुसम्पन्न करने के बाद से गुजरात राज्य में ही गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मानों पूरे गुजरात को पावन बना दिया है। गुजरात का कच्छ का रण हो या सौराष्ट्र की भूमि सर्वत्र ज्योतिचरण की चरणरज पड़ चुकी है। ऐसे सौभाग्य को प्राप्त कर गुजरातवासी भी अत्यंत आनंदित और उल्लासित हैं। सोने में सुहागा है कि वर्ष 2025 का चतुर्मास भी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद के कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में आयोजित है।
चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, अहमदाबाद भी अपने आराध्य के अभिनंदन के लिए पलक-पांवड़े बिछाए प्रतीक्षारत है। चातुर्मासिक व्यवस्थाएं पूर्णता की ओर अग्रसर हैं। समस्त कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन को लेकर उत्साहित व तत्पर नजर आ रहे हैं। आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ धीरे-धीरे अहमदाबाद के निकट से निकटतर होते जा रहे हैं। शनिवार को प्रातः की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी मोडासा से गतिमान हुए। जन-जन को आशीष देते हुए आचार्यश्री लगभग 11 किलोमीटर का विहार कर शिणावाड में स्थित शिणावाड यूथ प्राथमिकशाला में पधारे।
प्राथमिकशाला में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में वाणी एक तत्त्व है। आदमी बोलकर अपने विचार को दूसरों तक पहुंचाता है। बोली हुई बात को सुनकर दूसरे के विचार से अवगत भी हुआ जा सकता है। मनुष्यों द्वारा बोले जाने वाली भाषा बहुत विकसित हैं। पशुओं द्वारा बोले जाने वाली भाषा तो सीमित होती है, किन्तु आदमी द्वारा बोले जानी वाली भाषा बहुत विस्तृत है।
शास्त्रों में बोलने की कला का वर्णन किया गया है कि आदमी को मित बोलना चाहिए। जैसे भोजन को लिमिट में किया जाता है, उसी प्रकार लिमिट में बोलना भी चाहिए। अधिक बोलना असुहावना और अहितकर भी हो सकता है। मौन साधना का अच्छा प्रयोग है, लेकिन आदमी को बिना मौन के अपनी वाणी का विवेक रखना चाहिए। जो मित बोलता है, वह विद्वानों में प्रशंसा को प्राप्त होता है। आदमी को मित बोलने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, आदमी को अच्छा बोलने का प्रयास करना चाहिए।
वाणी दोषरहित और मधुर हो। वाणी को वशीकरण मंत्र कहा गया है। मित बोलना और मीठा बोलना बहुत अच्छा होता है। आदमी जो भी बोलता है, उससे पहले विचार कर लेना चाहिए। पहले अपनी बुद्धि से समीक्षा कर वाणी का उपयोग करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि आज बताया गया कि हमारे मुख्यमुनि का जन्मदिन है। आज ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी जो ज्ञान पंचमी है। ज्ञान का बहुत विकास हो और जो श्रुत है, वह बहुश्रुत हो जाए। 37 वर्ष पूरे हुए हैं। 38वां जन्मदिन है। इनके जन्म के साथ श्रुत पंचमी का दिन मिला है। वैसे मुख्यमुनि को श्रेष्ठ श्रुताराधक की डिग्री भी मिली हुई है। अब तो बहुश्रुत परिषद के संयोजक भी हैं। स्वास्थ्य अच्छा रहे, साधना अच्छी रहे, खूब अच्छी परिश्रमशीलता का क्रम बना रहे। आचार्यश्री से मंगल आशीष प्राप्त कर मुख्यमुनिश्री महावीर कुमारजी भावविभोर नजर आ रहे थे। आचार्यश्री के चरणों में नतमस्तक होकर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
आचार्यश्री ने ग्रामवासियों व विद्यार्थियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। प्राथमिकशाला के प्रिंसिपल श्री कनुभाई परमार ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।
