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जीवन की उपलब्धि व संपत्ति है ज्ञान : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– मोडासा के दूसरे दिन के प्रवास को आचार्यश्री पहुंचे श्री एच.एल.पटेल सरस्वती विद्यालय

– लगभग 6.5 कि.मी. का विहार कर मोडासा नगर में विराजे शांतिदूत

– साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने भी जनता को किया उद्बोधित

– नगरपालिका अध्यक्ष सहित मोडासावासियों ने दी भावनाओं की अभिव्यक्ति

30 मई, 2025, शुक्रवार, मोडासा, अरवल्ली (गुजरात)।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मोडासावासियों पर ऐसी कृपा की बरसात की है कि मोडासावासी हर्ष से विभोर बने हुए थे। क्योंकि आचार्यश्री ने मोडासावासियों को एक दिन के प्रवास के स्थान पर दो दिनों का प्रवास प्रदान किया। गुरुवार की शाम गुजरात सरकार के मंत्री श्री भीखूभाई परमार आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में पहुंचे। आचार्यश्री के दर्शन व मंगल आशीर्वाद से लाभान्वित हुए।
शुक्रवार को प्रातः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मोडासा के एक छोर पर स्थित श्री जीरावला लब्धि-विक्रम धाम से गतिमान हुए और जन-जन के मानस को पावन बनाते हुए मोडासावासियों को विशेष अनुग्रह की वर्षा कराते हुए लगभग साढ़े छह किलोमीटर का विहार कर मोडासा नगर के मध्य स्थित श्री एच.एल.पटेल सरस्वती विद्यालय में पधारे। अपने आराध्य के दूसरे दिन के प्रवास का आध्यात्मिक प्रभाव जन-जन के मुख पर स्पष्ट दिखाई दे रहा था।
विद्यालय परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालु जनता को आचार्यश्री से पूर्व साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया। तदुपरांत युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रद्धालु जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञानरूपी प्रकाश से दूर किया जा सकता है। ज्ञान रूपी तलवार से अज्ञान रूपी काठ को काटा जा सकता है। ज्ञान एक प्रकार का प्रकाश है, जिसके द्वारा अज्ञान के अंधकार को दूर किया जा सकता है। आज दुनिया में अनेक विद्या संस्थान हैं। अनेक माध्यमों से विद्या संस्थानों द्वारा विद्यार्थियों को ज्ञान देने का प्रयास किया जाता है। ज्ञान जीवन की एक उपलब्धि एवं सम्पत्ति होती है।
पुस्तकों के पढ़ने से ज्ञान का अर्जन होता है तो बहुत कुछ सुनकर भी ज्ञान को ग्रहण किया जाता है। अनेक गुरु, संत, आचार्य आदि के प्रवचनों के श्रवण से भी ज्ञान का अर्जन किया जाता है। आज के आधुनिक दौर में तकनीकी युग के विकास के कारण आज तो आदमी कहीं से भी संतों की वाणी को सुन सकता है। सुनकर आदमी कल्याण और पाप को जान लेता है। दोनों को जानकर जो श्रेयस्कर हो उसका जीवन में पालन करने का प्रयास करना चाहिए।
सम्यक् ज्ञान हो जाए और वह जीवन में उतर जाए तो जीवन कितना अच्छा हो सकता है। सुख के दो प्रकार बताए गए हैं-एक है तात्कालिक सुख और एक है शाश्वत सुख। शब्द, रूप, रस, गंध व स्पर्श-ये पांच विषय हैं। पांच इन्द्रियों के ये पांच विषय हैं। इनके द्वारा भौतिक सुख अथवा तात्कालिक सुख की प्राप्ति हो सकती है। अभौतिक, अलौकिक और आध्यात्मिक सुख आंतरिक होता है। पदार्थों से मिलने वाला सुख क्षणिक सुख होता है।
आदमी को विचार करना चाहिए कि उसे तात्कालिक सुख चाहिए अथवा आध्यात्मिक सुख चाहिए। भौतिक संसाधनों से सुविधा मिल सकती है, किन्तु त्याग, संयम, तप, जप आदि के माध्यम से प्राप्त होने वाला सुख शाश्वत सुख है, आध्यात्मिक सुख होता है। भौतिक संसाधनों से सुविधा और साधना से शांति की प्राप्ति हो सकती है। इसलिए आदमी को पापों से विरत रहकर आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
आज हमारा मोडासा में आना हुआ है। आचार्यश्री तुलसी यहां पधारे थे। आज हमारा आना हुआ है। सरस्वती विद्या संस्थान में प्रवास हो रहा है। विद्यार्थी का मुख्य लक्ष्य ज्ञान पाना होना चाहिए न कि किसी प्रकार अंक प्राप्त करना। ज्ञान के साथ बच्चों में अच्छे संस्कार, नैतिकता, ईमानदारी, परिश्रमशीलता रहे तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। बच्चे नशामुक्त रहें, बच्चों का व्यवहार अच्छा हो जाए तो भविष्य भी अच्छा हो सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत श्री भार्गव चावत, श्रीमती मोनिका हिरण, श्री हरि पटेल, डॉ. दिव्य शाह, श्रीमती उमा चावत, श्रीमती मुस्कान जैन, बालक विधान भंसाली व भव्य शाह ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। भंसाली व चावत परिवार के सदस्यों ने अपनी प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला के बच्चों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। नगरपालिका अध्यक्ष श्री नीरज सेठ ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से मंगल आशीष प्राप्त की।

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