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साधुत्व की मंजिल है सिद्धत्व : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– सिद्धपुर में सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण का मंगल पदार्पण

– पाटण जिले में शांतिदूत का मंगल प्रवेश, 11 कि.मी. का हुआ विहार

– सिद्धपुरवासियों ने अपने आराध्य का किया भावभीना स्वागत-अभिनंदन

– साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने भी जनता को किया उद्बोधित

– सिद्धपुरवासियों ने स्वागत में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति

10 मई, 2025, शनिवार, सिद्धपुर, बनासकांठा (गुजरात)।
गुजरात की पग-पग की धरा को अपनी चरणरज से पावन बनाते हुए, जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति जैसे मानवोपयोगी संदेश देते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को बनासकांठा जिले से पाटण जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया।
जन-जन को मंगल आशीष प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ बनासकांठा जिले के तेनीवाड़ा गांव से मंगल प्रस्थान किया। क्षेत्र में आए तीव्र तूफान और वर्षा के कारण तीव्र आतप में थोड़ी कम महसूस हो रही थी, किन्तु दिन के समय में सूर्य की उपस्थिति राहगीरों को परेशान करने वाली थी। पथ की समता-विषमता, वातावरण की अनुकूलता-प्रतिकूलता में समभावी रहने वाले अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी जन-जन पर आशीष प्रदान करते हुए अगले गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। आज आचार्यश्री सिद्धपुर की ओर गतिमान थे। सिद्धपुर में भी आचार्यश्री का दो दिवसीय प्रवास व आचार्यश्री का दीक्षा दिवस समारोह आयोजित होना पूर्व निर्धारित है। अपने आराध्य की महनीय कृपा को प्राप्त कर सिद्धपुरवासी हर्षविभोर नजर आ रहे थे। वे अपने आराध्य के मंगल पदार्पण हेतु उत्सुक नजर आ रहे थे।
विहार के दौरान आचार्यश्री ने बनासकांठा जिले से पाटण जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। करीब 11 किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पाटण जिले के सिद्धपुर में पधारे तो सिद्धपुरवासियों ने मानवता के मसीहा आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री सिद्धपुर में स्थित श्री स्वामी नारायण गुरुकुल में पधारे। आचार्यश्री का सिद्धपुर में दीक्षा दिवस भी समायोजित है।
गुरुकुल में बने संयमोत्सव समवसरण में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आज हमारा सिद्धपुर में आना हुआ है। सिद्धपुर नाम जैनिज्म से जुड़ा हुआ है। जैन लोग कितनी बार ‘णमो सिद्धाणं’ का पाठ करते होंगे। सिद्धों को नमस्कार किया जाता है। सिद्ध किसी व्यक्ति व स्थान का नाम भी हो सकता है। आठ कर्मों से मुक्त आत्माएं सिद्ध होती हैं। मानव संसारी जीव होता है। वह अभी संसार में जन्म-मृत्यु कर रहा है। सिद्ध बनने से पहले उस जीव ने कितना तप तपा है, कितनी धर्माराधना, साधना की होती है। तब कहीं जाकर वह सिद्धत्व को प्राप्त होते हैं। हमारे जीवन का भी यह लक्ष्य होना चाहिए कि हम भी कभी सिद्धत्व को प्राप्त करें। साधु तो संसार से मुंह मोड़ लेता है तो उसका परम लक्ष्य ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धत्व की प्राप्ति के लिए पहले साधुत्व को प्राप्त करना होगा। सिद्धत्व मंजिल है तो साधुत्व मार्ग है।
साधु का जीवन तो साधनामय होना ही चाहिए। साधुत्व के सामने तो संसार की बड़ी से बड़ी भौतिक चीज भी मानों तुच्छ होती है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी अपने जीवनकाल के ग्यारहवें वर्ष में साधु बन गए थे। आचार्यश्री तुलसी जीवन के बारहवें वर्ष में साधु बन गए थे। आज सिद्धपुर एरिया में आना हुआ है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी भी यहां आए थे। हम सभी सिद्धत्व की दिशा में आगे बढ़ सकें, ऐसा प्रयास होना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने भी जनता को उत्प्रेरित किया। आचार्यश्री के स्वागत में श्री लोभचंद चावत, श्री संजय इंटोदिया, श्री शंकरलाल इंटोदिया, श्री कस्तूरभाई व ज्ञानार्थी भीमंत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। सिद्धपुर के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। सिद्धपुर की बहन-बेटियों ने भी अपनी प्रस्तुति दी।

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