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विद्यार्थी जीवन में ज्ञान व चारित्र का हो विकास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– पालनपुर से गतिमान हुए ज्योतिचरण

– 9 कि.मी. का किया विहार, पूज्यचरणों से पावन हुई काणोदर की धरा

– आचार्यश्री के स्वागत में लोगों ने दी भावनाओं को अभिव्यक्ति

8 मई, 2025, गुरुवार, काणोदर, बनासकांठा (गुजरात)।
पालनपुर को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करने के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के स्वर्णिम अध्याय में महनीय आयोजन का स्थान प्रदान करने के उपरांत गुरुवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए तो पालनपुरवासियों ने अपने आराध्य के चरणों में कृतज्ञ भाव अर्पित किए। सभी पर मंगल आशीष की वृष्टि करते हुए आचार्यश्री आगे बढ़ चले। लगभग 9 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग काणोदर में स्थित एस.के.एम. हाईस्कूल में पधारे। संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का श्रद्धायुक्त स्वागत किया।
स्कूल में परिसर में समुपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि चार बातें बताई गई हैं-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। ज्ञान के द्वारा आदमी पदार्थों को जानता है, ज्ञानार्जन करता है। जो ज्ञान हुआ, सुना, जाना उस पर श्रद्धा दर्शन के द्वारा होती है। दर्शन से श्रद्धा पुष्ट होती है। अहिंसा का ज्ञान हो गया, उस पर दर्शन के द्वारा श्रद्धा हो गई और फिर जब वह अहिंसा जीवन में उतरी तो वह चारित्र हो गई। आदमी अपने जीवन में तपस्या भी करता है। कोई भोजन छोड़ता है अथवा अन्य किसी माध्यम से भी तपस्या करता है तो उससे पाप झड़ते हैं, जिससे आत्मा की शुद्धि होती है। इसलिए मानव जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व होता है। जब तक ज्ञान नहीं होगा, उसे समझ में नहीं आएगा तो भला जीवन का कल्याण कैसे हो सकता है।
विद्या संस्थानों के विभिन्न उपक्रमों के माध्यम से विद्यार्थी लाभान्वित होते हैं। विद्यालयों के लिए बहुत अच्छा अवसर होता है कि विद्यार्थियों के ज्ञान के साथ-साथ उनको संस्कारों का ज्ञान देकर उनके चारित्र को भी अच्छा बनाने का प्रयास होना चाहिए। विद्यार्थी में अच्छे संस्कारों का विकास होता है तो उसका जीवन अच्छा हो सकता है। गुस्से पर विद्यार्थी का नियंत्रण हो। उसकी भाषा सभ्य हो। जीवों के प्रति अहिंसा की भावना हो। विद्यार्थी में ईमानदारी के संस्कार भी रहें। ईमानदारी सर्वाेत्तम नीति है। ईमानदारी को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों के अधिकार की चीजों को हड़पने का प्रयास नहीं होना चाहिए। झूठ, चोरी और ठगी से दूर रहना ईमानदारी होती है।
विद्यार्थी में विभिन्न विषयों और भाषाओं का ज्ञान बढ़े तो उसके साथ अच्छे संस्कार और चारित्र भी अच्छा हो तो उनके जीवन में पूर्णता की बात आ सकती है। ज्ञान और चारित्र दोनों का मिश्रण हो जाता है तो विद्यार्थी का जीवन उन्नत बन सकता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज से 23 वर्ष पूर्व परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ आए थे और इस विद्यालय के परिसर में प्रवास हुआ था। यहां आने से उस समय की कुछ स्मृति हो रही है। उस समय मैं उनके साथ सेवा में आया था। हम विद्यार्थियों व अन्य लोगों में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की बात बताते रहते हैं कि सभी का जीवन अच्छा बन सके।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरांत मुनिश्री अक्षयप्रकाशजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री के स्वागत में एस.के.एम. हाईस्कूल की प्रिंसिपल श्रीमती बिन्दुबेन ठक्कर ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। श्री मोहम्मद भाई सुनसरा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

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