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धर्म करने वाली आत्मा होती है शुद्ध : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– अक्षय तृतीया महोत्सव: 450 तपस्वियों ने महातपस्वी महाश्रमणजी के समक्ष किया पारणा

– डीसा की धरा पर आयोजित अक्षय तृतीया महोत्सव में उमड़े श्रद्धालु

– चतुर्विध धर्मसंघ को आचार्यश्री ने प्रदान किया मंगल आशीष

– सात साधु-साध्वियों ने भी अपने आराध्य के समक्ष किया वर्षीतप का पारणा

30 अप्रैल, 2025, बुधवार, डीसा, बनासकांठा (गुजरात)।
वैशाख शुक्ला तृतीया अर्थात् अक्षय तृतीया का दिन गुजरात के बनासकांठा जिले के डीसा के इतिहास के लिए मानों अक्षय इतिहास सृजित कर गया। इस नगर ने पहली बार जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, मानवता के मसीहा, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल सान्निध्य में अक्षय तृतीया का महामहोत्सव बनाया गया। इस महोत्सव में देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से साढे़ चार सौ से अधिक तपस्वियों ने अपने आराध्य को ईक्षु रस का दान कर पारणा किया तो वहीं युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मुखारविंद से आज के दिन अनेक श्रद्धालु पुनः आशीर्वाद प्राप्त कर अगले वर्षीतप की तपस्या के पथ पर अग्रसर हो उठे।
जी हां! भक्ति, श्रद्धा, तप और दान के अनुपम दृश्य का साक्षात् अवलोकन कर रहा डीसा नगर। मंगलवार को डीसा में अपनी धवल सेना के साथ मंगल प्रवेश करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल सान्निध्य में बुधवार को अक्षय तृतीया महोत्सव का आयोजन प्रातः से ही प्रारम्भ हो गया।
श्री महाराणा प्रताप स्कूल परिसर में बने भव्य एवं विशाल ‘अक्षय समवसरण’ में सुबह से ही देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे श्रद्धालु उपस्थित होने लगे। कार्यक्रम का शुभारंभ होने से पूर्व ही समवसरण श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण नजर आ रहा था। डीसा नगर पहली बार ऐसे आध्यात्मिक आयोजन को देखने को लालायित नजर आ रहा था।
निर्धारित समय पर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अक्षय समवसरण के पण्डाल में विराजमान हुए तो पूरा वातावरण जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार से ‘अक्षय तृतीया’ समारोह का शुभारम्भ हुआ। सर्वप्रथम साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने अक्षय तृतीया और तपस्या के महत्त्व को व्याख्यायित किया। मुख्य मुनिश्री महावीर कुमारजी ने भगवान ऋषभ के जीवन पर प्रकाश डाला।
तत्पश्चात तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी मंगलवाणी से सम्पूर्ण जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जिस आदमी का मन सदा धर्म में रत रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। देव नमस्कार करें अथवा न भी करें, किन्तु धर्म करने वाले की आत्मा शुद्ध बनती है। धर्म के तीन प्रकार बताए गए हैं-अहिंसा, संयम और तप।
आज अक्षय तृतीया का समारोह मुख्यतया तप धर्म से सम्बद्ध है। एक तपःकालावधि की सम्पन्नता का दिन है। परम आराध्य, परम स्तवनीय भगवान ऋषभ का वर्षीतप आज के दिन सम्पन्न हुआ था। भगवान ऋषभ इस भरतक क्षेत्र के वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर, प्रथम केवली और प्रथम चक्रवती हुए। उनके जीवन पर दृष्टिपात किया जाए तो उनका जीवन अनेक आयामों का स्पर्श करने वाला रहा। भगवान ऋषभ ने गृहस्थ का जीवन भी व्यतीत किया। उन्होंने उस दौरान प्रशिक्षण और उपदेश किया व जीवन में राजनीति के रूप में शासन-प्रशासन को भी संभाला। वे राजा बने और उन्होंने राजा के कर्त्तव्यों का भी पालन किया। एक समय के बाद उन्होंने राज-काज का परित्याग किया। अपने पुत्रों को व्यवस्था संभलाई और संन्यास के मार्ग पर आगे बढ़ गए। उनसे गृहस्थ को प्रेरणा लेनी चाहिए कि समय आने पर अपने जीवन में मोड़ लेना चाहिए और अपने जीवन को साधना के मार्ग पर लगाने का प्रयास करना चाहिए। भगवान ऋषभ ने चौत्र कृष्णा नवमी को साधुपन स्वीकार किया था। साधुपन के बाद लोगों ने भगवान ऋषभ को भिक्षा में अन्न आदि दान ही नहीं दिया तो उनके वर्षीतप हो गया। बारह महीने से भी ज्यादा समय उनकी तपस्या हो गई। उसके बाद आज का दिन आया और आज के दिन श्रेयांशजी द्वारा उन्हें पेय प्राप्त हुआ और उनकी तपस्या सम्पन्न हुई।
आज के दिन वर्षीतप का पारणा होता है। यह सुंदर साधना का उपक्रम लगता है। एक दिन खाना और एक दिन नहीं खाना। कई साधु-साध्वियां तो वर्षीतप के साथ विहार आदि का कार्य भी करते हैं। वर्षीतप तो तपस्या है ही, स्वाध्याय को भी तपस्या कहा गया है। श्रुत की आराधना की जाती है। मुख्य मुनिश्री तो हमारे बहुश्रुत परिषद के संयोजक हैं। इसमें सात सदस्य हैं। साध्वीप्रमुखाश्रीजी, साध्वीवर्याजी, मुनि दिनेश कुमारजी, बाहर में मुनिश्री उदित कुमारजी स्वामी, शासन गौरव साध्वीश्री राजीमतीजी और शासन गौरव साध्वीश्री कनकश्रीजी ‘लाडनूं’ इसके सदस्य हैं। हमारे अनेक साधु-साध्वियां आगम कार्य से जुड़े हुए हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने श्रुताराधना के रूप में कितनी तपस्या की होगी। इसी प्रकार सेवा भी तपस्या है। साधु-साध्वियां सेवा का प्रयास भी करते हैं। हमारे साधु-साध्वियां निर्देश देते ही सेवा-सहयोग के लिए तत्पर हो जाते हैं।
आचार्यश्री ने वर्षीतप के दौरान नियमों का वाचन किया। आचार्यश्री ने इच्छुकों को अगले वर्षीतप का प्रत्याख्यान कराया। तदुपरांत गत वर्ष में वर्षीतप करने वालों को आलोयणा प्रदान करते हुए कहा कि किसी प्रकार का दोष लगा हो तो 13 सामायिक करना है। वर्षीतप करने वाले साधुवाद के पात्र हैं। यह अच्छा क्रम चलते रहना चाहिए। आज अक्षय तृतीया है और आज के दिन मंत्री मुनिश्री सुमेरमलजी स्वामी ‘लाडनूं’ का छह वर्ष पूर्व जयपुर में महाप्रयाण हो गया था। उनके पास अच्छा ज्ञान था। उन्होंने अपने ढंग से धर्मसंघ की सेवा की। आचार्यश्री ने उनकी स्मृति की। आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को साधना करने की प्रेरणा प्रदान की। समाज की विभिन्न संस्थाओं द्वारा धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य करते रहने की प्रेरणा प्रदान की। आज का अक्षय तृतीया का कार्यक्रम डीसा में हो रहा है। डीसा के सभी जैन एवं जैनेतर परिवार अच्छे धर्म के मार्ग पर चलते रहें।
मंगल आशीष प्रदान करने के उपरांत आचार्यश्री ने भगवान ऋषभ के वर्षीतप के पारणे से संदर्भित गीत का संगान भी किया। तदुपरांत अक्षय तृतीया प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री विनोद बोरदिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, डीसा ने गीत का संगान किया। अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास की ओर श्री शांतिलाल जैन ने कुछ जानकारी दी। डीसा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
इसके उपरांत आरम्भ हुआ आचार्यश्री को ईक्षुरस का दान देकर वर्षीतप का पारणा। सर्वप्रथम तीन साध्वीवृंद और चार संतवृंद ने आचार्यश्री के समक्ष अपने वर्षीतप सम्पन्न किए। इसके उपरांत श्रावक-श्राविकाओं ने आचार्यश्री के समक्ष रखे पात्र मंे ईक्षुरस का दान करते हुए अपना-अपना वर्षीतप सम्पन्न किया। यह दृश्य डीसावासियों को अभिभूत करने वाला था। डीसा के विधायक श्री प्रवीणभाई माली ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरांत अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

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