– नौ कि.मी. का विहार कर शांतिदूत पहुंचे आखोल
– श्री महाविदेह तीर्थधाम में तीर्थंकर के प्रतिनिधि का मंगल पदार्पण
28 अप्रैल,, 2025, सोमवार, आखोल, बनासकांठा (गुजरात)।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ सोमवार को रामपुरा से मंगल प्रस्थान किया। डीसा-थराद राजमार्ग पर गतिमान युगप्रधान आचार्यश्री डीसा की ओर गतिमान थे। जन-जन को अपने आशीष से लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आखोल में स्थित श्री महाविदेह तीर्थधाम में पधारे। स्थान से जुड़े हुए लोगों और उपस्थित श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया।
तीर्थधाम परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि दुनिया में साधु होते हैं। कोई वेशधारी, कोई नामधारी और कोई वस्तुतः साधु हो सकता है। साधु का वेश है और साधुता नहीं है तो वह तो केवल वेशधारी साधु होता है। एक केवल नामधारी साधु भी होता है। वास्तविक साधु तो वह होता है जो छठे गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान में से कोई एक गुणस्थान धारण करने वाला होता है। इनमें स्थान परिवर्तन हो सकता है। वह भावनिक्षेप वाला साधु प्रतीत होता है। साधुता तो जब भावनिक्षेप से होती है तो कल्याणकारी होती है। केवल वेश और नाम की साधुता से तो कल्याण संभव नहीं है। नाम और रूप तो पहचान के माध्यम बन सकते हैं, लेकिन साधुता के लिए मूल रूप से भावनिक्षेप की आवश्यकता ही होती है।
नाम और रूप मानव को ज्ञान कराने वाला होता है। जिस प्रकार नाम लेने से उनके विषय में जानकारी आती है और रूप अथवा तस्वीर देखने से किसी के विषय में जानकारी हो जाती है। आचार्यश्री ने प्रवचन के मध्य ‘सिमंधर स्वामी’ के गीत का आंशिक संगान किया।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज सिमंधर स्वामी से जुड़े स्थान में आना हुआ है। सभी चारित्र की उच्चता बढ़ती रहे। सिमंधर स्वामी वर्तमान में तीर्थंकर हैं। आचार्यश्री भिक्षु स्वामी महाप्रयाण के बाद दर्शन को पधारे थे, ऐसा कहा जाता है। तीर्थंकर की देशना से जीवों का कल्याण हो जाता है। भावनिक्षेप में वस्तुतः साधु बनने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरांत आचार्यश्री के मंगल सान्निध्य में साध्वीश्री संचितयशाजी की स्मृति सभा का आयोजन किया गया। उनके संदर्भ में आचार्यश्री ने संक्षिप्त परिचय प्रदान करते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की। आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने चार लोगस्स का ध्यान किया। मुख्य मुनिश्री महावीर कुमारजी तथा साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की।
