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शल्य के समान हैं काम और भोग : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

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– डीसा की ओर गतिमान ज्योतिचरण, करीब 12 कि.मी. का हुआ विहार

– 29 अप्रैल को अक्षय तृतीया समारोह हेतु मंगल प्रवेश

– रामपुरा पगार केन्द्रशाला पूज्यचरणों से बनी पावन

27 अप्रैल, 2025, रविवार, रामपुरा, बनासकांठा (गुजरात)।
वर्ष 2024 में गुजरात के डायमण्ड सिटी सूरत में चतुर्मास, राजकोट में वर्धमान महोत्सव, भुज में गुजरात की धरती पर प्रथम मर्यादा महोत्सव के उपरांत गुजरात के डीसा नगर में वर्ष 2025 के अक्षय तृतीया के आयोजन हेतु जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ निरंतर गतिमान हैं। डीसावासी भी ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर अत्यंत हर्षविभोर हैं और अपने आराध्य की प्रतीक्षा में पलक-पांवड़े बिछाए हुए हैं। अक्षय तृतीया समारोह की तैयारियां अब लगभग पूर्णता की ओर हैं। 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया का कार्यक्रम आयोजित होना है, किन्तु आचार्यश्री 29 अप्रैल को ही अपनी धवल सेना के साथ डीसा में मंगल प्रवेश करेंगे। अपने आराध्य के पावन सान्निध्य में देश-विदेश से श्रद्धालु अक्षय तृतीया के अवसर पर अपने वर्षीतप का पारणा करने के लिए उपस्थित होंगे। जानकारी के अनुसार अभी तक लगभग साढे़ चार सौ से अधिक श्रद्धालु अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।
एक ओर तेरापंथ धर्मसंघ के संघीय आयोजन के लिए गुजरात की धरती मानों तत्पर नजर आ रही है। रविवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कापरा से मंगल प्रस्थान किया। पक्की सड़क पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें मानों अपना आतप बरसा रही हैं, किन्तु महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने श्रद्धालुओं पर आशीषवृष्टि करते हुए गतिमान थे। लगभग 12 किलोमीटर का विहार परिसम्पन्न कर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी रामपुरा में स्थित रामपुरा पगार केन्द्रशाला में पधारे।
केन्द्रशाला परिसर में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान समुपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि इस दुनिया में भौतिकता है तो आध्यात्मिकता भी है। भौतिकता पुद्गल जगत से जुड़ी हुई है और आध्यात्मिकता आत्मा से सम्बद्ध है। इस दुनिया में आत्मा नाम का तत्त्व भी है और पुद्गल नाम का तत्त्व भी हैं। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि इस धरती पर मूर्त द्रव्य भी हैं और अमूर्त चीजें भी विद्यमान हैं। षट्द्रव्यवाद की बात आती है।
धर्मास्तिकाय जीव और पुद्गल की गति में और अधर्मास्तिकाय जीव और पुद्गल के ठहरने में सहयोग करने वाला द्रव्य है। पूरे लोक में ये दोनों द्रव्य व्याप्त हैं। दुनिया के सभी जीव लोकाकाश में ही रहते हैं। भौतिक जगत में मूल पुद्गल है और आत्मा आध्यात्मिक जगत में मूल है। भौतिक जगत में शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श-ये पांच विषय भौतिक हैं। ये पांचों जीव के पंचेन्द्रिय से जुड़े हुए हैं। शास्त्र में बताया गया है कि ये विषय और काम शल्य के समान हैं और इनकी अभिलाषा रखने वाला अथवा इनमें संलग्न होने वाला जीव दुर्गति को प्राप्त हो जाता है। काम-भोगों को शल्य कहा गया है, जो प्राणियों को तकलीफ देने वाला है। इन काम-भोगों को जहर के समान कहा गया है। भौतिक पदार्थों का उपयोग आध्यात्मिक साधना में कर सकते हैं। भौतिकता का संयम के साथ उपयोग करें तो आदमी की आध्यात्मिक साधना में सहयोगी भी बन सकते हैं।

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