– आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के 16वें महाप्रयाण दिवस पर आचार्यश्री ने की अभिवंदना
– 12 कि.मी. का विहार कर खोरडा में पधारे शांतिदूत
– साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने अर्पित की श्रद्धांजलि
– बहुश्रुत परिषद के संयोजक मुख्य मुनिश्री को मिला गुरुवर का आशीष
24 अप्रैल, 2025, गुरुवार, खोरडा, बनासकांठा (गुजरात)।
वाव की धरा को धन्य बनाने के उपरांत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पुनः गतिमान हो चुके हैं। अब आचार्यश्री अक्षय तृतीया के समारोह के लिए डीसा की ओर अभिमुख हैं। युगप्रधान आचार्यश्री के पावन चरणरज से वर्तमान में बनासकांठा की धरती पावनता को प्राप्त हो रही है।
गर्मी के बढ़ते मौसम में जन-जन के मानस को आध्यात्मिक जल से अभिसिंचन प्रदान करने वाले, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को अपनी धवल सेना के साथ प्रातःकाल की मंगल बेला में थराद से मंगल विहार किया। आचार्यश्री के श्रीचरणों में थरादवासियों ने अपनी भक्तिभावना समर्पित की तो आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीष प्रदान करते हुए आगे कदम बढ़ाए। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 68 पर गति करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर खोरडा गांव में स्थित अंबाबेन प्रभुलाल त्रिवेदी आर्ट्स, कॉमर्स एण्ड साइंस कॉलेज परिसर में पधारे।
आज के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में तेरापंथ धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के 16वें महाप्रयाण दिवस के रूप में समायोजित हुआ। इस संदर्भ में निकट क्षेत्रों से श्रद्धालु काफी संख्या में उपस्थित थे। इस अवसर पर समुपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि तत्त्व का सम्यक् बोध करना, तत्त्व की समीक्षा करना अच्छी वृत्ति होती है। यथार्थ को समझने और समुचित रूप में समीक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। इसके माध्यम से मानव को यथार्थ का साक्षात्कार हो सकता है। मानव जीवन में प्रज्ञा एक ऐसी उपलब्धि हो सकती है, जिसके माध्यम से आदमी ज्ञान की गहराई में जा सकता है। प्रज्ञा की स्थिति निरपेक्ष होती है। प्रज्ञा में जहां राग-द्वेष मुक्तता हो वहां प्रज्ञा की स्थिति हो सकती है।
आज वैशाख कृष्णा एकादशी है। परम वंदनीय गुरुदेव, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दसमें आचार्यश्री महाप्रज्ञजी हुए। आज उनका 16वां महाप्रयाण दिवस है। वे एक छोटे गांव टमकोर में पैदा हुए थे। वे धर्मसंघ में 11वें वर्ष में साधु बने थे। वे हम सभी के मुनिनाथ बन गए। वे एक दार्शनिक, प्रभावशाली तथा विद्वान संत थे। ज्ञान के विकास में उनका काफी समय बीता। उनकी भाषा में गंभीरता थी। उनके लेखन आदि में गंभीरता दिखाई देती है। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी विशेष प्रज्ञा के धनी थे। उनमें ज्ञान और प्रज्ञा का वैभव था। उनका प्रवचन होते-होते ही प्रवचन साहित्य बन जाता था।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने अपने जीवनकाल के नवमें दशक में भी यात्राएं कीं। वे मुम्बई तक पधारे। उन्होंने अपने जीवनकाल के अंतिम दिन तक भी प्रवचन किया था। आज के दिन ही उनका महाप्रयाण हो गया था। उनको श्रद्धा के साथ स्मरण करता हूं। इस अवसर आचार्यश्री ने स्वरचित गीत का भी संगान किया। जयपुर से समागत श्री नरेश मेहता ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
आचार्यश्री के पावन पाथेय व श्रद्धाप्रणति के उपरांत साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के श्रीचरणों में अपनी श्रद्धांजलि समर्पित की। आचार्यश्री ने मुख्य मुनि महावीर कुमार जी को दो वर्ष पूर्व बहुश्रुत परिषद का संयोजक बनाए जाने के संदर्भ पावन प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के महाप्रयाण दिवस के संदर्भ में साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया।
