– वाव से विहार कर डीसा, पालनपुर की ओर गतिमान ज्योतिचरण
– 15 किमी विहार कर पधारे थराद, स्वागत में उमड़ा सकल समाज
23 अप्रैल, 2025, बुधवार, थराद, बनासकांठा (गुजरात)।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आज नौ दिवसीय प्रवास संपन्न कर वाव तेरापंथ भवन से मंगल विहार किया। गुरुदेव का पावन प्रवास समस्त वाववासियों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत करने वाला रहा। विहार के विदाई क्षणों में एक ओर जहां श्रद्धालु कृतज्ञ भावों से भावविभोर हो रहे थे वहीं आराध्य के पुनः शीघ्र पदार्पण की मंगल कामना कर रहे थे। स्थान-स्थान पर आशीष वृष्टि करते हुए गुरुदेव गंतव्य हेतु गतिमान हुए। आसमान से चिलचिलाती धूप जहां लोगों को तीव्र आतप का अहसास करा रही है वहीं शांतिदूत जन कल्याण के ध्येय के साथ डीसा, पालनपुर आदि क्षेत्रों की ओर विहार करते हुए गतिमान हो गए हैं। वाव से प्रथम पड़ाव करते हुए लगभग 15.2 किलोमीटर विहार कर गुरुदेव आचार्यश्री महाश्रमण जी थराद ग्राम में पधारे। युगप्रधान के स्वागत में मानों सकल थराद ग्राम उमड़ पड़ा। जैन-अजैन हर वर्ग समुदाय के श्रद्धालु जुलूस द्वारा धवल सेना का स्वागत का रहे थे। स्थानीय लक्ष्मीबेन कुँवरजी भाई परीख, नरेश परीख परिवार (मावसरी-वाव) के आवास पर गुरुदेव प्रवास हेतु पधारे।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान युग में युद्ध की बात चलती है और पहले भी युद्ध की बात चलती थी। दूसरों के साथ लड़ना तो एक सामान्य युद्ध है, पर स्वयं के साथ लड़ना व विजय प्राप्त करना परम युद्ध होता है। शास्त्र में जिस युद्ध की बात कही गई वह है-आत्म युद्ध। बाह्य युद्ध तो लोगों में भय का कारण बन सकता है। लेकिन देश के सैनिक देश की रक्षा के लिए अपने दायित्व को भी पूरा करने के लिए मौत से भी नहीं घबराते। दूसरों से लड़ना आसान है, पर भीतर के क्षत्रुओं व कषाय आदि शत्रुओं से लड़ना कठिन है। लेकिन यही आत्मयुद्ध की विजय परम विजय है। गुस्सा हमारा शत्रु है जिसे उपशम से जीता जा सकता है। गुस्से को जीतने के लिए एक बार में हम सफल न हों तो बार-बार प्रयास करें। जमीन से पानी प्राप्त करना हो तो भी अनेक बार खुदाई की जरूरत पड़ जाती है। प्रयास करते-करते सफलता प्राप्त होती है। प्रयास करते रहो, पर हार मत मानो। पुनः प्रयास कर असफलता से सबक लो। बार-बार प्रयास करने से तुम्हें सफलता भी मिल सकती है। प्रयत्न के बाद भी सफलता न मिले तो उसमें किसका दोष?
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि बीमारी में यदि डॉक्टर जबाब दे दें तो जीवन को आध्यात्म साधना की ओर मोड़ देना चाहिए। अंत समय में तो संथारा कर अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहिए। व्यक्ति के जीवन में समता रहे, न ज्ञान का घमंड, ना किसी अन्य प्रकार का अहंकार जीवन में हो।
थराद पदार्पण के संदर्भ में फरमाते हुए आचार्यप्रवर ने कहा कि आज वाव से थराद आना हुआ है। कभी परमपूज्य गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी यहां पधारे थे, पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी भी यहां पधारे, मैं तब युवाचार्य रूप में साथ था। थराद के लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए। विचार भी कितने सौहार्दपूर्ण, मैत्रीपूर्ण हैं। सभी में खूब धार्मिक विकास होता रहे।
कार्यक्रम में श्री नरेश भाई परिख, विधि परिख, सिल्की परिख, आयुषी परीख, त्रिस्तुति संघ से वाघभाई बोहरा, थराद संघ से प्रकाश भाई माजनी, जयंती भाई वकील ने अभिवन्दना में अपने विचार व्यक्त किए। परिख परिवार ने स्वागत गीत का संगान किया।
