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सही दिशा में हो बुद्धि का प्रयोग : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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– दूसरों के प्रति सद्भाव रखने हेतु गुरुदेव ने किया प्रेरित

– स्थानीय जुम्मा मस्जिद पधार कर शांतिदूत ने प्रदान किया प्रेरणा पाथेय

21 अप्रैल, 2025, सोमवार, वाव-थराद (गुजरात)।
नैतिकता, सद्भावना एवं नशामुक्ति के संदेश के साथ जन मानस में नैतिक मूल्यों के उन्नयन का महनीय कार्य करने वाले अणुव्रत अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी वाव धरा को अपने प्रवास से पावन बना रहे हैं। हर धर्म संप्रदाय के प्रतिनिधि गुरुदेव के दर्शन कर कृतार्थता की अनुभूति कर रहे हैं। आज प्रातः आचार्यप्रवर नगर की जुम्मा मस्जिद में पधारे एवं वहां मस्जिद प्रांगण में मुस्लिम बंधुओं को प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। सांप्रदायिक सौहार्द का यह क्षण हर उपस्थित व्यक्ति के लिए चिरस्मरणीय बन गया। मुस्लिम प्रतिनिधियों ने शांतिदूत का भावभीना अभिनंदन करते हुए कृतज्ञता व्यक्त की। जिसके पश्चात वर्धमान समवसरण में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के अंतर्गत गुरुदेव ने श्रद्धालुओं को अपनी अध्यात्मवाणी से लाभान्वित किया।
मंगल उद्बोधन में आचार्यप्रवर ने कहा कि जीवन में बुद्धि, शुद्धि व शक्ति-इन तीनों का बड़ा महत्व होता है। व्यक्ति को इन तीनों का सदुपयोग करना चाहिए। बुद्धिमान व्यक्ति समस्याओं का समाधान भी खोज सकता है। जैन दर्शन में आठ कर्म बताए गए हैं। ज्ञानावर्णीय, दर्शनावर्णीय आदि। ज्ञानावर्णीय कर्म के क्षयोपशम से ही बुद्धि की प्राप्ति होती है। बुद्धि का मिलना भी एक विशेष बात है, किन्तु उसका सदुपयोग करना चाहिए। बुद्धि का कभी दुरुपयोग न हो यह आवश्यक है। गलत शिक्षा देने से गलत मार्गदर्शन भी मिल सकता है।
एक कथा के माध्यम से प्रेरणा देते हुए गुरुदेव ने आगे कहा कि अपनी बुद्धि का प्रयोग कर व्यक्ति दूसरों को भी अच्छी सीख दे सकता है। सही दिशा दिखा सकता है। जो बुद्धि, मति का सम्यक् प्रयोग करता है उसके लिए वह कल्याणकारी हो सकती है। आचार्यश्री भिक्षु का प्रसिद्ध सूक्त है-‘बुद्धि बा ही सराहिए, जो सेवे जिन धर्म, वा बुद्धि किण काम री, जो पड़िया बांधे कर्म’। हम अपने मन को शुद्ध रखें व सबके प्रति शुद्धि की भावना रखें। जो दूसरों का अनिष्ट करता है, दूसरों के प्रति दुर्भावना रखता है, दूसरों का अनिष्ट हो या न हो उसका अनिष्ट तो हो ही सकता है। बुद्धिमता के साथ आत्म-विश्वास व हिम्मत भी रहे। व्यक्ति अपने ज्ञान का सही उपयोग करे, यह आवश्यक है।
तत्पश्चात मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार जी ने अपने भाषण में मन, वचन एवं काया को सत्प्रवृति में नियोजित करने की प्रेरणा प्रदान किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने गुरु की महत्ता बताते हुए सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने गीत द्वारा भीतर में आत्मरमण करने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम में वाव पथक व्यवस्था समिति संयोजक श्री विनीत संघवी ने अपने विचार रखे। श्री उधमचंद मोतीचंद संघवी परिवार ने गीत का संगान किया।

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