Jain Terapanth News Official Website

चिंता नहीं चिंतन से प्राप्त होगी शांति : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

Picture of Jain Terapanth News

Jain Terapanth News

– शांति के बाधक तत्वों को गुरुदेव ने किया व्याख्यायित

– शांतिदूत का सुपावन प्रवास प्राप्त कर धन्य हो रहे वाववासी

19 अप्रैल, 2025, शनिवार, वाव-थराद (गुजरात)।
व्यक्ति जीवन में सुख से रहना चाहता है। तनाव, चिंता, भय से मुक्त होकर वह शांत जीवन जीना चाहता है। यह अच्छी बात भी है किन्तु शांति में रहने के लिए व्यक्ति कठिनाइयों से ज्यादा डरता रहे यह विचारणीय बात है। शांति चाहिए पर कठिनाइयों से भय है तो यह दुर्बलता है। शांति चाहिए तो भीतर में साहस भी होना चाहिए। भीतर में क्रांति करने का भी साहस होना चाहिए। जो बुद्ध होते हैं, केवलज्ञानी, तीर्थंकर होते हैं उनका आधार शांति होता है। जब तक मोहणीय कर्म समाप्त नहीं होता तब तक बुद्धत्व की प्राप्ति नहीं होती। उपरोक्त विचार युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने वर्धमान समवसरण में जनमेदिनी को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
नौ दिवसीय वाव प्रवास के अंतर्गत मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यप्रवर ने आगे फरमाया कि सामान्य व्यक्ति शांति चाहता है। स्वयं शांति में रहे दूसरों को शांति में रहने दे। दूसरों की शांति में सलक्ष्य विघ्न-बाधा पैदा नहीं करनी चाहिए। शांति में एक बड़ी बाधा है-गुस्सा। किसी को बार-बार गुस्सा आता है तो यह एक बड़ा बाधक तत्व है। क्रोध को कम करने का प्रयास होना चाहिए। ज्यादा चिंता करना भी शांति का बाधक है।
गुरुदेव ने आगे बताया कि गृहस्थ व्यक्ति को रोटी-पानी की चिंता होती है। कपड़े, मकान जैसे मूलभूत आवश्यकता व्यक्ति की चिंता होती है। अलंकार फिर शादी की चिंता, फिर संतान की इच्छा, भौतिक वस्तुओं की इच्छा होती है। इस प्रकार के अनेक चिंता के निमित्त व्यक्ति के जीवन में बन सकते हैं। इन परिस्थितियों में भी व्यक्ति चिंता के दुख से दूर रहे। चिंता नहीं चिंतन करे। चिंता चिता के समान होती है। एक बिंदु का अंतर है किन्तु दोनों का काम है जलाना। चिता निर्जीव को जलाती है और चिंता सजीव को जलाती है। भय के कारण भी व्यक्ति के जीवन में अशांति होती है। भीतर में निर्भीकता रहनी चाहिए। बीमारी से व्यक्ति डर जाता है, मौत से कितना भय होता है। अपमान, गलती पकड़ी जाने जैसे अनेक भय व्यक्ति को सता सकते हैं। भयभीत व्यक्ति हिंसा भी कर सकता है और झूठ भी बोल सकता है। सभी कामनाओं की पूर्ति हो यह जरूरी नहीं, लोभ भी अशांति का बड़ा कारण बन सकता है। ये कुछ कारण हैं जो शांति प्राप्ति में बाधा बन सकते हैं।
गुरुदेव के उद्बोधन के पश्चात साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी का सारगर्भित भाषण रहा। अभिव्यक्ति के क्रम में साध्वीश्री हेमयशा ने वक्तव्य दिया। वाव पथक मूर्तिपूजक जैनसंघ, अहमदाबाद के प्रमुख श्री रमेशभाई वाडीलाल मेहता, सुश्री यश्वी, श्रीकेशभाई मेहता, श्री अंकेश भाई दोशी ने अपने विचार रखे।
मगनलाल न्यालचंद मेहता, खेतसी भाई केवलदास मेहता, स्वरूपचंद भाई वीरचंद भाई मेहता, चिमनलाल डायलाल भाई मेहता परिवार ने गीत की प्रस्तुति दी। वाव ज्ञानशाला, कन्या मंडल, अहमदाबाद ने स्वागत में प्रस्तुति दी।

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स